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तो क्या उच्च न्यायालय के मना करने के बाद भी होगी लॉटरी!

लखनऊ। उच्च न्यायालय की डबल बेंच के लॉटरी प्रक्रिया पर कोई कार्रवाई नहीं करने के स्पष्ट निर्देश के बावजूद आबकारी विभाग लॉटरी करने पर अड़ा हुआ है। एक तरफ कमिश्नर आज लगातार दूसरे दिन आबकारी पॉलिसी की तमाम खामियों पर जवाब देने के लिए अदालत में हाथ जोड़ खड़े होंगे वहीं दूसरी ओर उनका विभाग हाईकोर्ट के निर्देश का मजाक बनाते हुए लॉटरी करने पर आमादा है इसका खामियाजा भी आबकारी आयुक्त को ही भुगतना पड़ेगा।

कल अदालत में क्या हुआ:

कल इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में सिंगल और डबल बेंच में लॉटरी से जुड़े मामले की सुनवाई हो रही थी। सबसे पहले सिंगल बेंच में मामला सामने आया जिस पर अदालत ने कहा कि यह पॉलिसी से जुड़ा मामला है और इसकी सुनवाई हम नहीं कर सकते इस डबल बेंच में भेजिए। अदालत के इस फैसले से आबकारी विभाग को झटका लगा क्योंकि इससे पहले सिंगल बेंच में जो भी मामले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चल रहे थे वह सब के सब विभाग के पक्ष में खारिज हो गए थे। करीब 1:00 बजे के आसपास मामला डबल बेंच में पहुंचा जिसमें जस्टिस राजन राय और ओमप्रकाश शुक्ला की बेंच ने पॉलिसी मैटर को सिंगल बेंच में भेजने के लिए रजिस्टर को तलब कर लिया। मामले की सुनवाई शुरू होने होते ही आबकारी आयुक्त को तत्काल तलब कर लिया गया। आबकारी आयुक्त ने जैसे ही हाईकोर्ट का निर्देश सुना उनके पैर से जमीन खिसक गई। आनन फानन में उन्होंने अपने कवच के रूप में एलपी मिश्रा एडवोकेट को अपना काउंसिल नियुक्त किया यहां बताना जरूरी है कि एडवोकेट मिश्रा कोर्ट में प्रत्येक पेशी के लिए ₹500000 से अधिक चार्ज करते हैं। अदालत में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तीन महत्वपूर्ण सवाल आबकारी आयुक्त से पूछे। पहला सवाल यह पूछा कि आबकारी पॉलिसी लाने से पहले इसमें किए गए संशोधन संबंधी गजट क्यों नहीं हुआ। विभाग की ओर से अवगत कराया गया कि गजट हुआ था अदालत ने पूछा कब हुआ तो विभाग द्वारा बताया गया 3 मार्च को। कोर्ट ने पूछा की पॉलिसी पहले आई और गजट बाद में ऐसा क्यों। इसका कोई जवाब आबकारी आयुक्त नहीं दे सके। कोर्ट ने फुटकर लाइसेंसी का रोल ओवर पॉलिसी में क्यों खत्म किया गया। इसका जवाब भी आबकारी आयुक्त नहीं दे सके। इसके बाद कोर्ट ने 6 मार्च को भी सुनवाई जारी रहने का आदेश सुनाया और कहा कि तब तक लॉटरी प्रक्रिया पर विभाग आगे नहीं बढ़ेगा।

कोर्ट में क्यों लटकेगी आबकारी पॉलिसी:

आबकारी विभाग ने पॉलिसी बनाने में जो है बड़ी दिखाई है वही कोर्ट में उसे भारी पड़ रही है

आबकारी पॉलिसी में कंपोजिट दुकान का प्रावधान किया गया है मतलब बियर शॉप का अस्तित्व समाप्त करके उसे वाइन शॉप में मर्ज किया गया जब की दुकान का सृजन और विलोपन का अधिकार केवल तभी हो सकता है जब इसका महामहिम राज्यपाल द्वारा विधिवत अनुमोदित होकर गजट प्रकाशित किया जाए इस पर आप पत्तियां आए और उन आपत्तियों का निस्तारण हो क्योंकि यह आबकारी अधिनियम 1910 के तहत संरक्षित है। आबकारी पॉलिसी बनाते समय इस नियम का उल्लंघन किया गया जिसे कोर्ट ने संज्ञान ले लिया। पॉलिसी के महत्वपूर्ण परिवर्तनों के संबंध में गजट पहले प्रकाशित होना चाहिए और पॉलिसी बाद में आना चाहिए लेकिन यहां उल्टा हुआ पॉलिसी पहले आई है और गजट पॉलिसी आने के 1 महीने बाद आई है।

सांख्यिकी के आंकड़े जारी करने के लिए कोई अधिकारी ही नहीं है:

आबकारी पॉलिसी बनाते समय सांख्यिकी अधिकारी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है और आबकारी विभाग में अभी तक किसी सांख्यिकी अधिकारी की कोई नियुक्ति ही नहीं है। ऐसे में गंभीर सवाल उठता है की आबकारी पॉलिसी के संबंध में सर्व किसने किया और आंकड़ों पर हस्ताक्षर किसके हैं। यदि यह प्रकरण हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान आता है तो कमिश्नर की मुश्किल बढ़नी तय है क्योंकि कमिश्नर ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने ही एक डिप्टी एक्साइज कमिश्नर को अवैध रूप से संयुक्त निदेशक सांख्यिकी जैसे अवैध पद पर नियुक्त कर रखा है।

संविदा पर रखे गए लोगों ने बनाई पॉलिसी:

आबकारी पॉलिसी इसलिए भी सवालों के घेरे में है क्योंकि यह पॉलिसी विभाग से ही रिटायर हो चुके गिरीश चंद्र मिश्रा और हरिश्चंद्र श्रीवास्तव जैसे लोग जो कि इस समय ठेके पर रखे गए हैं उन्होंने बनाई है। उनकी ही बने पॉलिसी का खामियाजा आबकारी विभाग और कमिश्नर हाईकोर्ट में भुगत रहे हैं। कंपोजिट दुकान बनाने का सुझाव हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने दिया था जबकि बिना गजट के ही आबकारी पॉलिसी लाने का सुझाव गिरीश चंद्र मिश्रा का था यह लोग विभाग में प्रतिमाह लाखों रुपया विभाग की मदद करने के एवज में लेते हैं। इनकी बेवकूफी का खामियांजा आज कमिश्नर को कोर्ट  की कड़ी फटकार के रूप में भुगतना पड़ा। गिरीश चंद्र मिश्रा कमिश्नर के लीगल एडवाइजर के रूप में सेवाएं दे रहे हैं फिर वह कोर्ट में क्यों उपस्थित नहीं हुए और कोर्ट के सवालों का जवाब क्यों नहीं दे पाए उन्हें अब किस बात के लिए विभाग में रखा गया है समझ से परे है। हरिश्चंद्र श्रीवास्तव जो कि शराब माफियाओं के लिए ही काम करते हैं उन्हें विभाग ने रिटायर होने के बाद भी सेवा में क्यों रखा है इसका जवाब भी कमिश्नर को देना चाहिए। कमिश्नर को यह भी बताना चाहिए कि जब एलपी मिश्रा जैसे महंगे वकील जिनकी फीस प्रत्येक पेशी के लिए ₹500000 से ज्यादा है उसका भुगतान कौन देगा और विभाग भुगतान क्यों करें क्योंकि विभाग ने पहले ही नियमित रूप से अपने विधि परामर्श दात्री की नियुक्ति कर रखी है फिर ऐसे में निजी तौर पर कमिश्नर ने महंगे वकील की सेवा क्यों ली और अगर ली है तो इसका भुगतान क्या कमिश्नर अपने वेतन से करेंगे या अवैध रूप से विभाग ही भुगतान करेगा और भुगतान करेगा तो क्या वह ऑडिट ऑब्जेक्शन में आएगा या नहीं।

आज बहस के महत्वपूर्ण बिंदु:

आज होने वाली बहस में रिटेल प्रीमियम शॉप और थोक दुकानों के नवीनीकरण का भी   मुद्दा उठाया जा सकता है। से महत्वपूर्ण बात यह है कि इन दुकानों को लॉटरी से मुक्त क्यों किया गया। एक तरफ फुटकर दुकानदारों के कोटे की शराब को जो की ड्यूटी पेड़ है उसे विभाग अवैध मानते हुए पॉलिसी में इसे नष्ट करने की बात कर रहा है वही fl2 और cl2 को केवल इसलिए लॉटरी से मुक्त रखा गया ताकि वह रोल ओवर का लाभ ले सकें और उन्हें कोई नुकसान ना हो इसका लॉजिक भी कोर्ट को समझाना पड़ेगा।

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