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दिल्ली और यूपी के शराब घोटाले में समानता:

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश और दिल्ली के शराब घोटाले में काफी समानता है: आज कैग रिपोर्ट में दिल्ली शराब घोटाले के सारे धागे खोल कर रख दिए गए हैं लेकिन कैग ने जींस अनियमित और भ्रष्टाचार का मामला दिल्ली शराब घोटाले में उठाया है वैसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में हो रहा है जिस पर अभी भी कैग की रिपोर्ट आने बाकी है।

उत्तर प्रदेश में शराब घोटाले के प्रमुख बिंदु:

● 2019 में तत्कालीन प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी ने बिना कैबिनेट की मंजूरी के जनपदों में सर्कल को सेक्टर में डिवाइड कर दिया तथा मनमाने ढंग से अपने नजदीकी इंस्पेक्टर की तैनाती करके मनमानी वसूली की इस मामले का कैग ने संज्ञान ही नहीं लिया।

● 2021 में सहारनपुर की टपरी स्थित कोऑपरेटिव डिस्टलरी में  अवैध रूप से 100 करोड रुपए से अधिक की शराब की निकासी हुई और विभिन्न जिलों में बेची गई। इस मामले की शासन और प्रवर्तन निदेशालय स्तर से जांच में लीपा पोती हुई और कई प्रमुख आबकारी अधिकारी तत्कालीन प्रमुख सचिव के नजदीकी होने के चलते सभी जांचों से बिना प्रभावित हुए प्रोन्नति पाए रहे और कुछ रिटायर भी हो गए। संयुक्त आबकारी आयुक्त ईआइबी जैनेंद्र उपाध्याय जिनके लखनऊ में डिप्टी एक्साइज कमिश्नर रहते हुए उन्नाव में बड़ी मात्रा में टपरी की शराब बेची गई लेकिन इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बताया जा रहा है कि तत्कालीन प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी के कहने पर ही सहारनपुर की टपरी कोऑपरेटिव डिस्टलरी में जानबूझकर इंस्पेक्टर और सहायक आबकारी आयुक्तों की तैनाती नहीं हुई जिससे इस डिस्टलरी से बड़ी मात्रा में शराब तस्करी में कोई बाधा ना आए। बताया जा रहा है कि इस मामले में आरोपी बने जैनेंद्र उपाध्याय ने लखनऊ के वृंदावन में  करोड़ों रुपए बहुमूल्य का एक फ्लैट देकर अपनी जान बचाई थी और बाद में इनाम के तौर पर जॉइंट एक्साइज कमिश्नर बन गए।

गोंडा में करोड़ो रूपये का ईएनए घोटाला:

2024 में उत्तर प्रदेश का आबकारी विभाग एक बड़े घोटाले को लेकर चर्चा में रहा। गोंडा स्थित स्टार लाइट डिस्टलरी को ऑफ लाइन  परमिट जारी करके डिस्टलरी को लगभग 100 करोड रुपए के घोटाले का विभाग द्वारा मौका दिया गया। इस मामले में गोंडा स्थित नवाबगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है। विवेचना कर रहे अधिकारी का कहना है कि इस घोटाले में डिस्टलरी के मालिक के अलावा जिला आबकारी अधिकारी डिस्टलरी में तैनात सहायक आबकारी आयुक्त तत्कालीन डिप्टी एक्साइज कमिश्नर देवीपाटन मंडल और वर्तमान डिप्टी एक्साइज कमिश्नर तथा आबकारी मुख्यालय में भी शीर्ष अधिकारी इस घोटाले में शामिल हैं। इस मामले में आबकारी आयुक्त की भूमिका बेहद संदिग्ध बताई जा रही है। कहां जा रहा है कि इस प्रकरण में दोषी किसी भी अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हो रही है क्योंकि इस प्रकरण में आबकारी आयुक्त की आरोपी डिस्टलरी मलिक जगदीश अग्रवाल के साथ मिली भगत है।

हजारों करोड़ का शीरा घोटाला:

उत्तर प्रदेश में आबकारी पॉलिसी के अनुसार 42.8 तीव्रता वाली देसी शराब को केवल अनाज से बनाने की मंजूरी दी गई और रेडीको आईजीएल तथा वेव ग्रुप की कुछ कंपनियां अनाज से 42.8 तीव्रता वाली शराब बनती रही है और देसी शराब में इस तीव्रता की शराब का हिस्सा करीब 30% है नियमानुसार देसी शराब का जितना हिस्सा अनाज से बनाया जा रहा है उतना मोलासेस के आवंटन में कटौती की जानी चाहिए लेकिन यहां उलटी गंगा बहती रही लगातार शराब कंपनियों को 100% मोलासेस का आवंटन जारी किया गया और इस खेल में करीब 300000 कुंतल मोलासेस की तस्करी की गई और कहां जा रहा है कि प्रमुख सचिव से लेकर कमिश्नर तक इस घोटाले में शामिल रहे।

फर्जी जॉइंट डायरेक्टर स्टैटिक की नियुक्ति:

आबकारी विभाग के प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए सांख्यिकी निदेशालय के एक अधिकारी को पदोन्नति दी और उसके द्वारा मनमाने ढंग से फर्जी आंकड़े जारी करवाएं बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश का आबकारी विभाग के राजस्व आंकड़ों में कम से कम 10000 करोड रुपए की हेरा फेरी की गई है। इसी परंपरा को आगे बढ़ते हुए वर्तमान कमिश्नर आदर्श सिंह ने भी अपने पद का दुरुपयोग करते हुए डिप्टी एक्साइज कमिश्नर प्रदीप दुबे को जॉइंट डायरेक्टर स्टैटिक के रूप में फर्जी ढंग से तैनात कर रखा है और मनमाने तथा फर्जी आंकड़े जारी करवा रहे हैं। यदि इस मामले की जांच हो तो कई अधिकारी जेल जा सकते हैं।

कुल मिलाकर आबकारी विभाग में कई हजार करोड रुपए का घोटाला हो चुका है जिसका अभी तक का एक रिपोर्ट नहीं आ रही है।

CAG रिपोर्ट: दिल्ली में शराब घोटाले के 10 प्रमुख बिंदु। जो रिपोर्ट विधानसभा में पेश हुई है उसको दस महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. ₹2,002.68 करोड़ का भारी राजस्व नुकसान

गैर-अनुरूप वार्डों में शराब की दुकानें न खोलने से ₹941.53 करोड़ का नुकसान।

सरेंडर किए गए लाइसेंसों का फिर से टेंडर न करने से ₹890 करोड़ का नुकसान।

COVID-19 के नाम पर ज़ोनल लाइसेंसियों को ₹144 करोड़ की छूट दी गई।

सुरक्षा जमा राशि ठीक से वसूलने में विफलता से ₹27 करोड़ की हानि।

  1. लाइसेंस नियमों का उल्लंघन

दिल्ली एक्साइज नियम, 2010 के नियम 35 का पालन नहीं किया गया।

थोक विक्रेताओं को लाइसेंस दिए गए, जो खुदरा और निर्माण कंपनियों से जुड़े थे, जिससे आपूर्ति श्रृंखला भ्रष्ट हुई।

  1. थोक विक्रेताओं का लाभ मार्जिन 5% से बढ़ाकर 12% किया गया

सरकारी लैब्स में गुणवत्ता जांच के बहाने बढ़ाया गया, लेकिन कोई लैब स्थापित नहीं हुई।

इससे थोक विक्रेताओं का मुनाफा बढ़ा, लेकिन सरकार का राजस्व घटा।

  1. लाइसेंसिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी

लाइसेंस जारी करने से पहले वित्तीय स्थिति, दिवालियापन और आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच नहीं की गई।

₹100 करोड़ के निवेश की आवश्यकता के बावजूद कोई वित्तीय पात्रता मानदंड नहीं रखा गया।

यह प्रॉक्सी स्वामित्व और राजनीतिक पक्षपात के संकेत देता है।

  1. विशेषज्ञों की सिफारिशों की अनदेखी

2021-22 की एक्साइज नीति बनाते समय, AAP सरकार ने अपनी ही एक्सपर्ट कमेटी की सलाह को नजरअंदाज कर दिया।

  1. मोनोपॉली और शराब कार्टेल को बढ़ावा

एक ही आवेदक को 54 शराब की दुकानें संचालित करने की अनुमति दी गई (पहले सीमा 2 थी), जिससे एकाधिकार बढ़ा।

सरकारी नियंत्रण हटाकर निजी कंपनियों को बाजार सौंप दिया गया।

  1. ब्रांड एकाधिकार और कृत्रिम मूल्य निर्धारण

शराब निर्माताओं को केवल एक ही थोक विक्रेता से जुड़ने के लिए मजबूर किया गया।

दिल्ली में 70% शराब बिक्री केवल 25 ब्रांडों की थी, जिनका नियंत्रण केवल 3 थोक विक्रेताओं के पास था।

इससे उपभोक्ताओं के विकल्प सीमित हो गए और शराब की कीमतें मनमाने ढंग से बढ़ाई गईं।

  1. कैबिनेट प्रक्रियाओं का उल्लंघन

बड़े वित्तीय प्रभाव वाले महत्वपूर्ण निर्णय कैबिनेट और उपराज्यपाल (LG) से परामर्श किए बिना लिए गए।

  1. गैर-कानूनी शराब की दुकानों की स्थापना

MCD और DDA की अनुमति के बिना आवासीय और मिश्रित भूमि उपयोग क्षेत्रों में शराब की दुकानें खोली गईं।

कई मामलों में, दुकानों को व्यावसायिक क्षेत्र बताकर लाइसेंस जारी किए गए, जबकि वे वास्तव में अवैध रूप से संचालित हो रहे थे।

  1. गुणवत्ता परीक्षण मानकों का उल्लंघन

बिना गुणवत्ता जांच रिपोर्ट के शराब लाइसेंस जारी किए गए।

51% विदेशी शराब परीक्षण रिपोर्ट या तो पुरानी थीं, गायब थीं, या बिना तारीख की थीं।

जहरीले पदार्थों (भारी धातु, मिथाइल अल्कोहल आदि) की जांच में भी लापरवाही बरती गई।

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