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देवीपाटन मंडल गांजा तस्करी कांड – आबकारी अफसरों का काला खेल, पुराने घोटालों के धागे भी जुड़े! 🚨


लखनऊ। देवीपाटन मंडल में गांजे की अवैध तस्करी का मामला अब सिर्फ एक लोकल स्कैंडल नहीं, बल्कि आबकारी विभाग के भीतर गहरी पैठ जमाए अफसर–माफिया गठजोड़ का पर्दाफाश बनता जा रहा है। आबकारी आयुक्त के स्पष्ट आदेश के बावजूद यह जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई है, जिससे यह संदेह और गहरा हो गया है कि कहीं सच्चाई सामने आने से बड़े नाम उजागर न हो जाएं।

बिना चौहद्दी वाली दुकान से गांजे की तस्करी की शिकायत सीधे आबकारी आयुक्त तक पहुंची थी। आदेश के बाद जॉइंट एक्साइज कमिश्नर दिलीप मणि त्रिपाठी को जांच सौंपी गई, लेकिन उन्होंने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यह वही त्रिपाठी हैं, जिनका नाम पहले भी टपरी शराब कांड में कार्रवाई टालने और प्रभावशाली लोगों को बचाने के आरोप में चर्चा में रहा था।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि त्रिपाठी आखिर डिप्टी एक्साइज कमिश्नर आलोक कुमार के खिलाफ सख्ती क्यों नहीं दिखा रहे, जबकि आबकारी आयुक्त ने खुद आलोक कुमार को इस केस में संदिग्ध मानते हुए उनसे जांच नहीं करवाई? आलोक कुमार का नाम पहले भी बलरामपुर में फर्जी लाइसेंस जारी करने और अवैध स्टॉक को वैध बताने के आरोपों में सामने आ चुका है, लेकिन हर बार मामला दबा दिया गया।

इसी तरह DEO/सहायक आबकारी आयुक्त. DEO/ बलरामपुर,    

DEO/ सहायक आबकारी आयुक्त श्रावस्ती DEO/ सहायक आबकारी आयुक्त गोंडा पर भी कई पुराने आरोप हैं—जिनमें अवैध शराब के परिवहन में मिलीभगत, जब्त माल की कालाबाजारी और गोदाम में गड़बड़ी शामिल है।

फिलहाल गोंडा की चार दुकानें निलंबित जरूर की गई हैं, लेकिन अंदरखाने से खबर है कि यह कार्रवाई सिर्फ दिखावा है। असली सरगनाओं को बचाने के लिए छोटे कर्मचारियों पर शिकंजा कसा जा रहा है, जबकि बड़े अफसर राजनीतिक रसूख और विभागीय नेटवर्क के दम पर बेखौफ घूम रहे हैं

सूत्रों का दावा है कि देवीपाटन मंडल में गांजे की खेप नक्सल प्रभावित इलाकों से लाई जाती है और पुलिस–आबकारी गठजोड़ की सुरक्षा में यहां सप्लाई की जाती है। यह नेटवर्क वर्षों से चल रहा है और करोड़ों का खेल हर महीने होता है।

अगर निष्पक्ष और उच्चस्तरीय जांच नहीं हुई, तो यह मामला भी टपरी शराब कांड की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा—और जनता सिर्फ अफवाहों से सच तलाशती रह जाएगी।


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