सख्ती के बाद लखनऊ में ऑनलाइन हुआ परमिट रूम लाइसेंस
लखनऊ। विभाग में विभिन्न स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार और अराजकता को लेकर आबकारी आयुक्त के तेवर बेहद सख्त हो गए हैं। लखनऊ में परमिट रूम लाइसेंस ऑनलाइन जारी होने का मामला अवध भूमि न्यूज़ में प्रमुखता से चलाया था जिसका आबकारी आयुक्त ने संज्ञान लिया और कुछ वरिष्ट अधिकारियों को तलब कर लिया इसके बाद हड़कंप मच गया है।
अपनी गर्दन फँसते देख कर जिम्मेदार अधिकारी अब लाइसेंसी मॉडल शॉपऔर बियर के दुकानों के अनुज्ञप्ति से तुरंत परमिट रूम लाइसेंस के लिए अप्लाई करने को कह रहे हैं जबकि इसके पहले परमिट रूम लाइसेंस देने के नाम पर तगड़ी उगाही हो रही थी और किसी को भी लाइसेंस नहीं मिल पा रहा था।
आबकारी आयुक्त के इस कदम पर अनुज्ञपि लाइसेंसियों ने राहत की सांस ली है।
अवैध रूप से परमिट लाइसेंस जारी करने के लिए किसकी तय होगी जिम्मेदारी:
आबकारी आयुक्त के सख्त कदम के बाद लखनऊ का वसूली गैंग पस्त हो गया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि यह गोरख धंधा काफी समय से चल रहा है ऐसे में इसकी जवाब देही तय की जानी बेहद जरूरी है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि
जो भी परमिट रूम लाइसेंस जारी हुए हैं उनके लाइसेंस फीस कि हेड में जमा हुई। और अभी तक अवैध रूप से चलने वाले परमिट रूम की जिम्मेदारी किसकी होगी। जिला आबकारी अधिकारी कार्यालय में तैनात एक लिपिक परशुराम तिवारी और इंस्पेक्टर विजय शुक्ला का नाम बार-बार सुर्खियों में आ रहा है बताया जा रहा है कि यह दोनों जिला आबकारी अधिकारी राकेश सिंह जॉइंट एक्साइज कमिश्नर दिलीप मणि त्रिपाठी और डिप्टी एक्साइज कमिश्नर दिनेश सिंह के भी करीबी हैं। इस खेल के मास्टरमाइंड हरिश्चंद्र श्रीवास्तव बताए जा रहे हैं। एडिशनल कमिश्नर लाइसेंस के रूप में अपनी तैनाती के दौरान इस तरह के बहुत से फर्जी लाइसेंस उन्होंने जारी किए थे। यह वही हरिश्चंद्र श्रीवास्तव हैं जिन्होंने ट्रैक एंड ट्रेस सिस्टम में पूरे आबकारी विभाग को फंसा दिया है। टेंडर ओएसिस विभाग का हुआ था लेकिन इन्होंने अवैध रूप से मेंटल पोर्टल के जरिए आबकारी विभाग के गेट पास और क्यू आर कोड जारी करके आबकारी विभाग के राजस्व में कई हजार करोड रुपए का चूना लगा दिया।
टपरी कांड के मास्टरमाइंड है हरिश्चंद्र श्रीवास्तव
सहारनपुर के टपरी से 100 करोड रुपए से अधिक मूल्य की शराब बिना गेट पास के निकल गई और पूरे प्रदेश में बिक गयी उसे समय हरिश्चंद्र श्रीवास्तव एडिशनल कमिश्नर लाइसेंस थे लेकिन इसे किसी प्रकार की पूछताछ नहीं हुई। कोई भी आप पूछने वाला नहीं है कि आखिर टापरी में जिस समय अवैध रूप से शराब की निकासी हो रही थी इंस्पेक्टर की तैनाती क्यों नहीं की गई थी। कहा जा रहा है कि इंस्पेक्टर और सहायक आबकारी आयुक्त अगर तैनात होता तो टापरी कांड रोका जा सकता था।
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