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यूपी में राजकीय बाल गृहों की स्थिति जेल से बदतर: हाई कोर्ट महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में भ्रष्टाचार को लेकर हाईकोर्ट नाराज

लखनऊ। महिला एवं बाल विकास विभाग की कैबिनेट मंत्री देवी रानी मौर्य का विभाग भ्रष्टाचार को लेकर पूरी तरह घिर गया है। अनाथ एवम उपेक्षित बच्चों हेतु संचालित राजकीय बाल गृहों में गंभीर भ्रष्टाचार पर मा.उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने की गंभीर टिप्पणियां की है। हाई कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में व्याप्त भ्रष्टाचार पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि राजकीय बाल गृहों में रह रहे बच्चों की स्थिति जेल से भी खराब है उन्हें ना तो उचित भोजन मिल रहा है और ना ही उनकी ठीक से देखभाल की जा रही है।

इस टिप्पणी से सरकार की छवि धूमिल हो रही है।
महिला कल्याण विभाग द्वारा संचालित राजकीय संस्थानों में रह रहे बच्चों की तंगहाली एवं उनको दी जा रही घटिया सुविधाओं को दृष्टिगत रखते हुए माननीय उच्च न्यायालय प्रयागराज के मुख्य न्यायाधीश श्री प्रीतकर दिवाकर तथा जस्टिस अजय भनोट द्वारा बहुत ही कठोर टिप्पणियां की गई हैं, उनके द्वारा यह कहा गया कि राजकीय संस्थाओ में बच्चों को तंगहाली में जिस प्रकार से रखा गया है उससे स्पष्ट लग रहा है कि उनकी हालात जेल से भी बदतर हो चुकी है ,ऐसे बच्चों को ना तो सूरज की खुली रोशनी मिल रही है और ना ही ताजी हवा मिल रही है और ना ही खेल के मैदान मिल रहे हैं जिसके कारण इनका बचपन भी इनसे छीना जा रहा है ,प्रदेश की राजकीय संस्थानों में जो ओवरक्राउड की स्थिति बनी हुई है, उनको माननीय उच्च न्यायालय ने पूर्व में ही पर्याप्त जगह वाली संस्थाओं में भेजने के निर्देश दिए थे परंतु उसका अनुपालन महिला कल्याण विभाग द्वारा ना जाने किसके दबाव में नहीं किया जा रहा है ??पिछले तीन वर्षों से निर्माणाधीन निर्माण कार्यों हेतु जो बजट शासन द्वारा राजकीय संप्रेषण गृहों यथा मिर्जापुर ,चित्रकूट, फिरोजाबाद ,रायबरेली, गोरखपुर आदि को प्रदान किया गया था उनको अत्याधिक कमिशन खोरी के चक्कर में अपने मन माफी वाली निर्माण दायी संस्थाओं से पर्याप्त कमीशन मिलने के चक्कर में बिगत 3 वर्षों से उन बजट को उच्च स्तर से लैपस कराए जा रहे हैं जबकि यदि यह संस्थाएं समय से बनकर तैयार हो जाती तो इनसे ओवरक्राउड की स्थिति ना होती इसके अतिरिक्त माननीय उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश की बेंच द्वारा बहुत ही मूलभूत प्रश्न उठाते हुए यह कहा कि महिला कल्याण विभाग की प्रशिक्षित मूल स्टाफ की तैनातियां राजकीय संप्रेषण गृह एवम अन्य संस्थाओं में न होने के कारण बच्चों को ना तो स्किल्ड प्रोफेशनल प्रशिक्षण प्रदान किये जा पा रहे हैं और ना ही उनके साथ कर्मचारियों के व्यवहार कुशलतापूर्वक हो रहे हैं इसके मूल कारण यह है कि यहां पर मूल पदों पर तैनात अधीक्षक, सहायक अधीक्षक, केस वर्कर, मनोवैज्ञानिक को भ्रष्टाचार के खेल में संस्थाओं के मूल पदों से अलग जगह पर तैनाती देकर यह राजकीय संस्थाएं केयरटेकर अथवा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के माध्यम से जनपद प्रयागराज, मिर्जापुर, सहारनपुर, वाराणसी ,मऊ ,कानपुर आदि में संचालित हो रही है आखिर क्यों ना हो क्योंकि इन चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की जिला परिवीक्षा अधिकारी के आगे कुछ भी नहीं चलती है फलस्वरूप डीपीओ
इन संस्थानों में अपनी पूर्ण मनमानी करते हुए 27-27 परसेंट तक कमीशन खोरी कर रहे हैं इसका कारण यह है कि उनकी उपस्थिति में ठेकेदारी प्रथा संस्थानों में फलेगी और जिसमें उच्च स्तर के लोग इसमें भागीदार हैं !विभाग में विभागीय कर्मचारियों की बदहाली एवं विभाग को कैडर रिव्यू एवं स्ट्रैंथनिंग करने हेतु पूर्व प्रमुख सचिव रेणुका कुमार ने एक शपथ पत्र पूर्व में दाखिल किया था परंतु रेणुका कुमार के जाने के चार साल बाद भी इस कैडर रिव्यू में पूरा कार्य ठप हो गया ? इस हेतु जिम्मेदारी एवं उत्तरदायित्व का निर्धारण कौन करेगा कि आखिर यह व्यवस्था ठप क्यों की गई इसका जिम्मेदार कौन है. आज कोर्ट ने बहुत ही कठोर टिप्पणियों के साथ आगामी तिथि की सुनवाई में विभागीय प्रमुख सचिव का पर्सनल एफिडेविट भी तलब कर लिया है बेशक यह गंभीर मसला है जिससे राज्य सरकार की छवि आम जनमानस में धूमिल हुई है! इसी प्रकार से मानसिक प्रकृति के स्पेशल नीड वाली संस्थाएं जैसे मिर्जापुर, बनारस ,नोएडा आदि क्यों बंद की गई?? जिस कारणवश स्पेशल नीड वाले बच्चों को समान्य बच्चों के साथ रहना पड़ रहा है! राजकीय संस्थानों में जो ठेकेदारी प्रथा विगत 5 वर्षों से उच्च स्तर के संरक्षण में चल रही है उसका जिम्मेदार कौन है ?यह ठेकेदारी प्रथा जनपद लखनऊ ,आगरा, कानपुर ,प्रयागराज ,मेरठ, वाराणसी आदि में व्यापक रूप से चल रही है जो कि उपभोक्ता भंडार के नाम पर बाजार की दरों से भी उच्च मूल्य पर बिना क्रय सामान की आमद किये फर्जी बिलों पर केंद्र सरकार से मिशन वात्सल्य योजना अंतर्गत प्राप्त धनराशि की खुली लूट विभागीय मंत्री के संरक्षण में उनके ही निजी रिश्तेदारों की दखलंदाजी से चाहे वह आगरा हो या लखनऊ में हो! खुली लूट मची हुई है आखिर खुली लूट क्यों ना की जाए जब अधिकाधिक राजकीय संस्थाओं के जनपदों में जिला प्रोबेशन अधिकारियों की तैनाती हेतु दस लाख की तैनाती सुविधा शुल्क लेने की परंपरा वर्तमान में बन गई है तो यह लूट आखिर बच्चों को मिलने वाले निवाले से ही,उनको मिलने वाली सुविधाओं में कटौती करके ही तो संबंधित जिला प्रवेश अधिकारी अपना नंबर मंत्री जी के यहाँ बढ़ा कर प्रदान करेंगे !!!आगरा में तो राजकीय संस्था में ठेकेदारी का विवाद लेकर ऐसा बढ़ा कि जिला प्रशासन को शांति बनाये रखने हेतु सिटी मजिस्ट्रेट को प्रशासक नियुक्त करना पड़ा!!यह सब राजकीय संस्थाओं में सामानों की आपूर्ति का खुला खेल तब हो रहा है जबकि विभागीय प्रमुख सचिव रेणुका कुमार ,मुख्य सचिव आदि तक के सामानों की आपूर्ति के आदेश जेम पोर्टल से ही किए जाने के विभागीय आदेश हैं !कहानी यही नहीं खत्म होते दिख रही है,संस्थाओ में लूट का नंगा नाच अनुरक्षण मद में विगत 5 वर्षों से जनपद वाराणसी,लखनऊ ,मेरठ,आगरा आदि में हुआ है उसकी निष्पक्ष जाँच से बड़े बड़े घोटालों का पर्दाफाश हो जाएगा !अनुरक्षण मद के कार्य सरकारी कार्य दायी संस्था से न करवाकर स्वयं डीपीओ ही ठेकेदार भी बनकर सिर्फ चुने की पुताई दिखाकर 20 -20 लाख रुपये का एक एक बिल में गलत आहरण हुआ है.बेशक प्रमुख सचिव वीना कुमारी मीना जी की कार्यप्रणाली संदेह के परे है वह भ्रस्टाचार के प्रकरणों में सख्त कार्रवाई करने से नहीं चूकती हैं परंतु फिर भी जीरो tolerance की योगी सरकार की विस्वासपात्र होते हुए भी महिला कल्याण विभाग के अपने द्वितीय कार्यकाल में कुछ दबाव में दिखती नजर आ रहीं हैं !संस्थाओं की इस खुली लूट में बर्षों से जमें मुख्यालय के योजना अधिकारियों की संदिग्ध भूमिकाओं को भी नकारा नहीं जा सकता है!!!

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