आबकारी विभाग को लगा अरबो रुपए का चूना:

लखनऊ। तकनीकी विभाग में नियम विरुद्ध अवैध रूप से तैनात सहायक आबकारी आयुक्त संदीप मोडवेल और उनके सहायक या दूसरे शब्दों में कहें तो वसूली एजेंट अनिल यादव का एक ऐसा कारनामा सामने आया है जिसकी वजह से आबकारी विभाग को अरबो रुपए का चूना लगा है।
भरोसेमंद सूत्रों ने दावा किया है कि बड़ी शराब कंपनी आईजीएल गोरखपुर ने अपनी शराब उत्पादन क्षमता 200 किलो लीटर तक बढ़ाने के लिए तकनीकी विभाग की मंजूरी के लिए आवेदन किया। तकनीकी विभाग में तैनात नॉन टेक्निकल सहायक आबकारी आयुक्त सन्दीप मोडवेल जो इंजीनियरिंग या विज्ञान के छात्र नहीं है और लिटरेचर से परास्नातक की डिग्री हासिल की है उन्होंने इस शराब फैक्ट्री का तकनीकी सर्वेक्षण किया और रिपोर्ट भी बना दी। इतना ही नहीं कमिश्नर की मंजूरी भी मिल गई। पता चला है कि शराब फैक्ट्री से इस फर्जीवाड़े के लिए करोड़ों रुपए की वसूली हुई है और आबकारी विभाग को अरबो रुपए का चूना लगाया गया है।
कैसे हुआ घोटाला:
जानकारी मिली है कि आईजीएल शराब कंपनी शुरू से ही अपनी बढ़ी हुई क्षमता से शराब उत्पादन कर रहा था और तकनीकी विभाग की मिली भगत से शराब उत्पादन के आंकड़े 200 किलो लीटर तक कम दिखाई जा रहे थे। इस खेल में आईजीएल में तैनात सहायक आबकारी आयुक्त वहां तैनात डिप्टी एक्साइज कमिश्नर जॉइंट और तकनीकी विभाग के साथ-साथ आबकारी आयुक्त भी शामिल रहे हैं।
कैसे लगा सरकार को अरबो रुपए का चूना:
बताया जा रहा है कि सालों से आईजीएल अपनी बढ़ी हुई क्षमता के साथ शराब का अवैध उत्पादन करता रहा है। 200 किलो लीटर तक अतिरिक्त शराब उत्पादन करके आईजीएल ने हजारों करोड़ों रुपए कमाए ऐसा कहा जा रहा है फिलहाल सच्चाई क्या है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन आरोप तो बेहद गंभीर हैं। नियमानुसार प्रति एक किलो बल्क लीटर शराब उत्पादन पर करीब ₹50000 लाइसेंस फीस विभाग को मिलनी चाहिए जबकि इसी अनुपात में आबकारी शुल्क भी मिलना चाहिए कहा जा रहा है कि आईजीएल की यह चोरी उस समय पकड़ी गई जब क्षमता बढ़ाने के लिए रिसीवर और फर्मेंटर जैसे यंत्र शराब फैक्ट्री में इंस्टॉल ही नहीं किए गए मतलब किसी प्रकार का कोई नया निवेश आईजीएल ने नहीं किया लेकिन तकनीकी विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की मिली भगत से उसने कागज पर ही करोड़ों रुपए निवेश कर नए रोजगार सृजन करने और आबकारी विभाग का राजस्व बढ़ाने का दावा किया जो पूरी तरह फर्जी है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि ऐसे फर्जी प्रोजेक्ट को कमिश्नर की मंजूरी कैसे मिली दूसरा सवाल यह है कि नॉन टेक्निकल सहायक आबकारी आयुक्त को क्या इसीलिए विभाग में तैनाती दी गई है जिससे यह फर्जी वाड़ा चला रहे और किसी को पता ना चले।
आईजीएल की ही शिकायत में फंस गए सन्दीप मोडवेल:
आईजीएल की ओर से की गई शिकायत के बाद तथाकथित वरिष्ठ प्राविधिक अधिकारी सन्दीप मोडवेल की कार गुजारी सामने आई है। शराब फैक्ट्री की तरफ से की गई शिकायत में कहा गया है कि लाइसेंस देने में पूरी तरह लापरवाही की गई है और उसमें रिसीवर और फर्मेंटर जैसे जरूरी उपकरण के इंस्टॉलेशन की जानकारी ही नहीं दी गई है एक तरह से यह फर्जी लाइसेंस जारी कर दिया गया है और लगता है जैसे शराब फैक्ट्री का लाइसेंस देने से पहले किसी तरह का कोई सर्वे नही किया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब यह लाइसेंस निरस्त किया जाएगा यदि हां तो इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा और क्या दोबारा जो लाइसेंस जारी होगा वह भी वही व्यक्ति जारी करेगा जो नॉन टेक्निकल है।
कमिश्नर पर भी उठ रहे सवाल:
आबकारी आयुक्त पर इसलिए सवाल उठ रहे हैं क्योंकि उन्होंने नॉन टेक्निकल सहायक आबकारी आयुक्त को तकनीकी का नियम विरुद्ध प्रभार दे दिया जबकि नियमानुसार इस पद के लिए प्रदेश के प्राविधिक विभाग को अधियाचन भेजना चाहिए था। दूसरा सवाल यह है कि जब तकनीकी विभाग में प्राविधिक विभाग से दो सहायक अधिकारी आ गए हैं तो उन्हें इस सर्वे में क्यों नहीं भेजा गया जो की तकनीकी रूप से ज्यादा सक्षम है कुल मिलाकर षड्यंत्र और साजिश ही दिखाई दे रहा है।
सन्दीप मोडवेल के कार्यकाल में जितनी भी डिस्टलरी की उत्पादन क्षमता बढ़ाई गई है सब की जांच की आवश्यकता है। क्योंकि बिना किसी नए संयंत्र के यदि डिस्टलरी की उत्पादन क्षमता बढ़ गई तो यह इस बात का संकेत है कि शराब फैक्ट्रियां पहले से ही बड़ी हुई क्षमता के साथ अवैध रूप से शराब उत्पादन कर रही थी और विभाग को हजारों करोड़ का चूना लगा रही थी वह भी तकनीकी विभाग और कमिश्नर जैसे लोगों की मिली भगत से।
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