नई दिल्ली। आज अडानी के शेयरों में जबरदस्त तेजी देखने को मिल रही है। आखिर बिना किसी वजह के अडानी के शेयरों में तेजी कैसे आई। 1 सप्ताह में 10 लाख करोड़ रूपया गंवाने वाले अदानी की कंपनियों के शेयर कौन खरीद रहा है। शेयर खरीदने वाले देसी विदेशी ग्राहकों का विवरण सेबी देने से क्यों बच रही है।
शेयर बाजार में सब कुछ अनिश्चित है तथा रहस्य में है। ऐसा प्रतीत होता है कि अदानी की कंपनी कोई बड़ा खेल कर रही है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अडानी की सभी कंपनियों के 75% से ज्यादा शेयर कंपनी के प्रमोटर के पास हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब अडानी की कंपनियों के शेयर गिरने शुरू हुए तो क्या अडानी की कंपनियों के प्रमोटर ने भी शेयर बेचने शुरू कर दिए और यदि ऐसा हुआ तो क्यों। कंपनी के प्रमोटर शेयर बेचकर भला अपनी उस कंपनी का बेड़ा क्यों गर्क करना चाहेंगे जिसे उन्होंने प्रमोट करने के लिए अपनी बहुत सी संपत्तियों को बेचकर या कर्ज लेकर अडानी की कंपनियों के शेयर खरीदे थे। इसका सवाल फिलहाल नहीं मिल पा रहा है।
मंदड़ियों ने अपना काम कर दिया अब तेजड़ियों की बारी
पिछले 2 सालों से अडानी की कंपनियों के से रॉकेट की तरह ऊपर जा रहे थे और लगातार अपर सर्किट लग रहा था और पूरी दुनिया में अडानी की कंपनियों के शेयरों की धूम थी। लेकिन वास्तविकता बिल्कुल विपरीत थी। अडानी की कंपनियों के शेयर आम आदमी नहीं खरीद रहे थे बल्कि मोरक्को दुबई मारीशस और कैरेबियन द्वीप समूह में फर्जी नाम और पते पर जो सैकड़ों अदानी समूह की कंपनियां रजिस्टर्ड थी वही अदानी की कंपनियों के महंगे दाम पर शेयर खरीद रहे थे। कंपनी के प्रमोटर स्वयं अपनी सेल कंपनियों के माध्यम से अडानी की कंपनियों के शेयर महंगे दाम पर खरीद कर कंपनी का इकोनॉमिकल बैलून उड़ा रहे थे लेकिन जब उन्हें विश्वास हो गया कि इतने महंगे शेयर भारत की आम जनता नहीं ले सकती तो गौतम अडानी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपने मजबूत रिश्तो की बदौलत देश की सबसे मजबूत भारतीय जीवन बीमा निगम और स्टेट बैंक से भी कंपनियों के शेयर ऊंचे दाम पर खरीदने के लिए बेबस कर दिया। कंपनी के प्रमोटर और अडानी दोनों जानते हैं कि कंपनी के शेयर की वास्तविक वैल्यू क्या है।
सेबी अडानी की कंपनियों के प्रमोटर का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही
सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि अडानी की कंपनियों में भारी गिरावट के बाद ऐसे कौन लोग हैं जो पैसा लगा रहे हैं यह जानते हुए कि 85% से ज्यादा शेयर का दाम वास्तविक दाम से कई गुना ज्यादा रखा गया है। कहा जा रहा है कि बहुत से लोगों ने हजारों करोड़ रुपए का काला धन अडानी की कंपनियों में लगा रखा है। ऐसे में यदि सेबी उन कंपनियों के स्वामियों का नाम उजागर कर देगी तो ना केवल अदानी बल्कि सरकार भी मुश्किल में फंस जाएगी। अभी कहां जा रहा है कि अडानी की कंपनियों में इलेक्टोरल बांड भी निवेश किया गया है। सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बांड किस पार्टी के पास है सब जानते हैं। यदि सेबी ने यह सब खुलासा कर दिया तो पहले से ही अडानी के मित्र के रुप में असहज महसूस कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
अडानी की कंपनियों के शेयर खरीदने वालों की दोस्त क्यों बना प्रवर्तन निदेशालय
बाजार में इस बात को लेकर भी चर्चा हो रही है कि गोरख धंधा कर शेयरों के दाम में हेरा फेरी करने के आरोप के बावजूद प्रवर्तन निदेशालय शेयर खरीदने वाले विदेशी और देसी प्रमोटर और शेयरधारकों से पूछताछ क्यों नहीं कर रही है। कहा जा रहा है कि ऐसा इसलिए नहीं किया जा रहा है क्योंकि निवेशक डर जाएंगे और अडानी की कंपनियों में पैसा नहीं लगाएंगे। अडानी की कंपनियों में कितना सफेद है और कितना काला आखिर इस को लेकर ईडी और से भी खामोश क्यों हैं दोनों ही संस्थाओं की भूमिका सवालों के घेरे में है
ईडी और सेबी पर सवाल क्यों
जब अडानी की कंपनियों के शेयर लगातार धड़ाम हो रहे थे ऐसे में अदानी एफपीओ लाते हैं पहले दिन मात्र 3% शेयर सब्सक्राइब होता है जबकि अगले ही दिन 97% शेयर सब्सक्राइब होकर शत प्रतिशत सफल हो जाता है। यहीं ईडी और सेबी की नीयत पर सवाल उठना शुरू हो जाता है। आखिर अगले दिन 97% शेयर खरीदने वाले लोग कौन हैं। क्या वह हम लोग थे। क्या वह उद्योगपति थे या फिर अडानी की कंपनियों के प्रमोटर थे या अदानी के परिवार के सदस्य थे। यहीं पर यह जांच हो जानी चाहिए थी कि अडानी की कंपनी का शेयर खरीदने वाली कंपनियां जिन पर फेक होने का आरोप लगा था क्या यह शेयर उन्हीं के माध्यम से खरीदा गया। इन कंपनियों के स्वामी कौन थे उनके पास कंपनी के शेयर खरीदने के लिए पैसे कहां से आए यह धन काला था या सफेद इसको पता लगाने की जिम्मेदारी ईडी और सेबी की थी जो फिलहाल खामोश रहे।
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