लखनऊ। गोंडा जनपद के नवाबगंज स्थित डिस्टलरी स्टार लाइट में अब शराब उत्पादन को लेकर बड़े घोटाले की जानकारी मिल रही है। बताया जा रहा है कि 7 वर्षों से डिस्टलरी के बॉटलिंग प्लांट से बैच की सैंपलिंग नहीं की गई और ना ही प्रयागराज स्थित लैब से कोई टेस्ट कराई गई। सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि बिना लैब टेस्ट के डिस्टलरी को बॉटलिंग करने की अनुमति कैसे दी गई।
शराब घोटाले में सबसे बड़ा नाम जोगिंदर सिंह का सामने आ रहा है जिसने बिना लैब टेस्ट रिपोर्ट के ही उत्पादन के फर्जी आंकड़े जारी कर दिए।
क्यों जरूरी है लैब टेस्ट के रिपोर्ट
किसी भी डिस्टलरी के लिए प्रत्येक बैच की लैब टेस्ट रिपोर्ट आवश्यक की गई है यह शासनादेश पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूस रेड्डी ने किया था। शासनादेश में देसी शराब के प्रत्येक बैच की क्षेत्रीय प्रयोगशाला में प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था बावजूद इसके पिछले 7 वर्षों से स्टार लाइट डिस्टलरी ने कभी भी किसी भी बैच के शराब का नमूना परीक्षण के लिए क्षेत्रीय प्रयोगशाला में भेजा ही नहीं जिससे यह पता करना मुश्किल है कि 25 36 और 42 डिग्री की कितनी शराब यहां बनाई गई। मजेदार बात यह है कि यहां पर डिप्टी एक्साइज कमिश्नर के रूप में तैनात रहे वर्तमान जॉइंट एक्साइज कमिश्नर लखनऊ अपनी मासिक निरीक्षण रिपोर्ट में इस बात पर कभी हैरान ही नहीं हुए कि डिस्टलरी द्वारा बैटलिंग के उपरांत किसी भी बच की शराब का नमूना परीक्षण के लिए क्षेत्रीय प्रयोगशाला क्यों नहीं भेजा गया। जानकारी के मुताबिक मासिक निरीक्षण रिपोर्ट का मतलब मासिक वसूली था। लैब में परीक्षण से छूट देने के लिए दिलीप कुमार मणि त्रिपाठी जैसे लोग डिस्टलरी से लाखों रुपए की वसूली कर रहे थे। यह कम वर्तमान में डिप्टी एक्साइज कमिश्नर आलोक कुमार जैसे लोग भी कर रहे हैं उनके लिए भी यह बात हैरानी की नहीं है कि सालों से स्टार लाइट डिस्टलरी अपने किसी भी उत्पाद को लैब परीक्षण नहीं कर रहा है।
जनपद में ऐसे अवैध काम को रोकने की जिम्मेदारी प्रवर्तन इकाई की है लेकिन उसने भी अपनी कोई जिम्मेदारी निभाने के बजाय मासिक वसूली पर ध्यान केंद्रित रखा।
बिना लैब टेस्ट के कैसे जारी हुए बारकोड, पूर्व जॉइंट एक्साइज कमिश्नर और वर्तमान में संविदा पर कार्यरत हरिश्चंद्र श्रीवास्तव सवालों के घेरे में
नियम के मुताबिक लैब टेस्ट के बाद बोतल के लिए बारकोड जारी होता है लेकिन हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने इसकी कभी परवाह नहीं की और उनकी मिलीभगत से स्टार लाइट डिस्टलरी अवैध निकासी का खेल खेलती रही। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 100 करोड रुपए की अवैध बिक्री अभी तक इस डिस्टलरी से की जा चुकी है। निकासी फर्जी बारकोड से हुई है। बारकोड फर्जी मेंटल पोर्टल के जरिए जारी हुए। फर्जी मैटर पोर्टल चलने वाले हरिश्चंद्र श्रीवास्तव इस समय भी कार्यरत हैं।
जोगिंदर सिंह है इस शराब घोटाले का सरगना:
अभी हाल ही में फर्जी जॉइंट डायरेक्टर के पद से रिटायर होने वाले जोगिंदर सिंह को स्टार लाइट के हजारों करोड रुपए के शराब घोटाले का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है। मिली जानकारी के मुताबिक जहां पूरे प्रदेश की सभी डिस्टलरी को अपने प्रत्येक बैच की शराब उत्पाद को लैब परीक्षण के लिए भेजना अनिवार्य है वही स्टार लाइट को इससे छूट दी गई थी कहा जा रहा है कि यह छूट जोगेंद्र सिंह ने दिलवाई थी। कुछ लोगों का तो यह भी दावा है कि जोगिंदर सिंह की ऐसी शराब कंपनियों में हिस्सेदारी भी है।
कैसे हुआ शराब घोटाला:
जानकारों की माने तो बॉटलिंग के समय वास्तव में 36 25 और 42 डिग्री स्ट्रैंथ में हेरा फेरी की गई। मतलब यह कि 36 डिग्री वाली शराब की स्ट्रेंथ 32 डिग्री रखी गई मतलब शराब में पानी की मिलावट की गई। इसी तरह 42 डिग्री वाली शराब को 38 डिग्री पर रखा गया और यहां भी शराब की शुद्धता में पानी की मिलावट की गई। 25 डिग्री के शराब में भी मिलावट करके उसे 22 डिग्री तक रखा गया।
जानकारों का मानना है कि डिस्टलरी ने अपने शराब उत्पाद की स्ट्रेंथ को मानक के अनुरूप यानी 25 36 और 42 डिग्री का उत्पादन रिपोर्ट मुख्यालय में भेजा जबकि सभी श्रेणी की शराब उत्पादन में पानी की मिलावट की गई मतलब शराब का उत्पादन ज्यादा किया गया और मुख्यालय में जो रिपोर्ट भेजी गई वह मानक के अनुसार शराब उत्पाद बताई गई। कहा जा रहा है कि कथित रूप से पूर्व जॉइंट डायरेक्टर स्टैटिक जोगिंदर सिंह पूर्व डिप्टी एक्साइज कमिश्नर रहे जैनेंद्र उपाध्याय एवं पूर्व डिप्टी एक्साइज कमिश्नर रहे वर्तमान में जॉइंट एक्साइज कमिश्नर लखनऊ दिलीप कुमार मणि त्रिपाठी तथा वर्तमान में डिप्टी एक्साइज कमिश्नर आलोक कुमार डिस्टलरी में तैनात सहायक आबकारी आयुक्त आरपी चौहान जिला सहायक आबकारी आयुक्त प्रगल्भ लवानिया और वर्तमान में एडिशनल एक्साइज कमिश्नर टास्क फोर्स अरविंद कुमार राय के साथ मिली भगत करके कम से कम 3 लाख लीटर शराब अवैध रूप से इस डिस्टलरी में अवैध रूप से उत्पादन हुआ और इसको बेचा गया:
क्यों नहीं पकड़ी गई मिलावट और अवैध निकासी:
जानकारों का मानना है कि इस खेल में बहुत बड़ा रोल जिला सहायक आबकारी आयुक्त लवानिया का है। स्टार लाइट डिस्टलरी से कम गुणवत्ता वाली स्ट्रैंथ की शराब अगर दूसरे जनपद में बिकने के लिए जाती तो मामले का भांडा फूट जाता इसलिए साजिश करके जिला सहायक आबकारी आयुक्त ने ग्रेन से बनने वाली स्टार लाइट डिस्टलरी के सभी देशी शराब उत्पादों की पूरी मात्रा गोंडा जनपद में ही खपाने के लिए सभी cl2 पर यह दबाव बना दिया कि वह केवल स्टार लाइट डिस्टलरी का ही इंडेंट लगाएं अन्यथा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। बताया जा रहा है कि इस तरह से स्टार लाइट की मिलावट वाली शराब के खिलाफ कोई भी शिकायत आगे नहीं जा पाती। इस समय स्टार लाइट डिस्टलरी के सभी देसी शराब के उत्पादों की खपत गोंडा जनपद में ही हो जा रही है। जानकारी के मुताबिक स्टार लाइट डिस्टलरी द्वारा जिला सहायक आबकारी आयुक्त को प्रत्येक पेटी पर ₹100 तक ऑब्लिगेशन के लिए दिया जाता है। एक जानकारी के मुताबिक लगभग 55000 पेटी स्टार लाइट की देसी शराब के यहां पर खपत होती है।
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