नई दिल्ली। आखिरकार नोट बंदी के खिलाफ केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के नाटक का पटाक्षेप आज हो ही गया। सुप्रीम कोर्ट ने जैसा कि लोग पहले से ही अनुमान लगा रहे थे सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया।
जब सुप्रीम कोर्ट में नोट बंदी के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई हुई तो बहुत से लोगों को लगा कि शायद नोटबंदी की सच्चाई लोगों के सामने आ जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई का केवल नाटक किया और बाकी चीजें पहले से ही तय थी। ज्यादातर लोगों ने पहले ही अनुमान लगाया था कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी और आखिरकार वही हुआ।
सुप्रीम कोर्ट में कई वाजिब सवालों की अनदेखी हुई
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि नोटबंदी के फैसले में कौन-कौन शामिल है और इस फैसले पर आरबीआई और जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा की गई नोटिंग का भी खुलासा होना चाहिए लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। सबसे गंभीर सवाल यह था कि 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान हुआ जबकि इसके 1 वर्ष पूर्व ही 500 के नए नोट पर उर्जित पटेल के हस्ताक्षर हो गए थे। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि नोटबंदी एक साजिश थी यह देश में कुछ बड़े लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए की गई थी।
नाटक के जरिए केंद्र सरकार को क्लीन चिट देने की कोशिश:
पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए याचिकाओं को स्वीकार किया और केंद्र सरकार से सारे अभिलेख तलब किए। केंद्र सरकार ने अभिलेख प्रस्तुत करने में आनाकानी की। कोर्ट ने इस पर नाराजगी जाहिर की और कल टिप्पणियां की। अंततः केंद्र सरकार ने सील बंद लिफाफे में अभिलेख प्रस्तुत किए। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रिजर्व कर लिया और सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया कि नोटबंदी का फैसला सही था। सबसे बड़ा सवाल यह उठा है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों के हवाले से उन तथ्यों का उल्लेख क्यों नहीं किया जिसके आधार पर वह निष्कर्ष पर पहुंचा कि सरकार का फैसला सही है।
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