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उत्तर प्रदेश के आबकारी महकमे में डिजिटल अल्कोहल मीटर खरीद में करोड़ों का घोटाला: पूर्व कमिश्नर गुरु प्रसाद के साथ मिलकर सभाजीत वर्मा ने किया खेल

लखनऊ। करोड़ों रुपए से ज्यादा आय से अधिक संपत्ति मामले में फंसे आबकारी विभाग के तकनीकी अधिकारी सभा जीत वर्मा का एक और कारनामा सामने आया है।

पता चला है कि डिस्टलरी cl2 fl2 जिला आबकारी अधिकारी और इंस्पेक्टरों के लिए जो डिजिटल अल्कोहल मीटर खरीदा गया है उसमें बड़ा खेल हुआ है। डिजिटल अल्कोहल मीटर जिस की गुणवत्ता बेहद खराब बताई जा रही है। जानकारों के मुताबिक यह अल्कोहल की रीडिंग ज्यादा बताती है जिससे डिस्टलरी को लाभ होता है जबकि शराब का सेवन करने वालों को कामा गुणवत्ता वाली और शहर को नुकसान पहुंचाने वाली अल्कोहल मिल रही है।

बाजार से 5 गुना महंगे दाम पर खरीदा गया डिजिटल अल्कोहल मीटर

मिली जानकारी के मुताबिक जो डिजिटल अल्कोहल लीटर फिल्म बाजार में 50 से 75000 रुपय में उपलब्ध है उससे भी खराब गुणवत्ता वाला डिजिटल अल्कोहल मीटर पूर्व कमिश्नर गुरुप्रसाद और विभाग के तकनीकी अधिकारी सभाजीत वर्मा ने 4 से ₹5 लाख की कीमत पर खरीदा है। अब तक लगभग एक हजार से ज्यादा डिजिटल अल्कोहल मीटर की खरीद हो चुकी है और विभाग को लगभग ₹40 करोड़ का चूना लग चुका है।

Antonpaar ( एंटनपार) कंपनी के लिए बदला गया टेंडर का नियम:

मिली जानकारी के मुताबिक जिस एंटन पार कंपनी के ग्लास अल्कोहल मीटर की कीमत मात्र 25 से ₹35 हजार हुआ करती थी उसी कंपनी ने ग्लास अल्कोहल मीटर को डिजिटल अल्कोहल मीटर बताकर आबकारी विभाग में 4 से ₹5 लाख में बेच दिया। इस खेल में पूर्व कमिश्नर गुरुप्रसाद का पूरा साथ मिला मिला। एंटन पार कंपनी की राह की बाधा दूर करने के लिए टेंडर में इस तरह के बदलाव हुए जिससे केवल एंटन पार कंपनी ही क्वालीफाई कर सकें। यह सब काम सभाजीत वर्मा ने किया।

सूत्रों के मुताबिक गुरुप्रसाद सभाजीत वर्मा और एंटन पार कंपनी के बीच एक डील हुई जिसके बाद एंटन पार कंपनी को बिना किसी मुश्किल के यह टेंडर मिल गया। परचेसिंग कमेटी की ओर से सभी निर्णय सभा जीत वर्मा ने स्वयं लिए जबकि कमिश्नर गुरु प्रसाद का उन्हें पूरा वरदहस्त प्राप्त था।

यह भी जानकारी मिली है कि डिजिटल अल्कोहल मीटर की गुणवत्ता आबकारी विभाग के मेरठ लखनऊ प्रयागराज और गोरखपुर में खराब पाई गई और यहां के लैब असिस्टेंट ने डिजिटल अल्कोहल मीटर पर सवाल भी उठाए बावजूद इसके कमिश्नर की इच्छा के आगे किसी की एक नहीं चली।

4 करोड़ रुपए कीमत वाले डिजिटल अल्कोहल को लगभग 50 करोड़ में खरीदा गया

कहा तो यहां तक जा रहा है कि प्रत्येक डिवाइस पर 90% तक कमीशन वसूला गया है। यह धनराशि तकनीकी अधिकारी सभा जीत वर्मा के माध्यम से तत्कालीन अधिकारियों तक भी पहुंचाया गया। इतने बड़े स्तर पर धांधली और बंदरबांट होती रही और शासन स्तर पर खामोशी छाई रही जिसको लेकर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं।

नेशनल फिजिकल लैब

इस डिवाइस की गुणवत्ता बेहद खराब है कहां जा रहा है कि नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री में इसे कभी टेस्ट के लिए नहीं भेजा गया और ना ही नियमानुसार उसकी मंजूरी ली गई है फिर भी शराब की गुणवत्ता मिलावट जांचने के लिए इसी डिजिटल अल्कोहल मीटर का प्रयोग अभी किया जा रहा है।

मेरठ अलीगढ़ और लखनऊ में नकली शराब पीकर कई लोग गवा चुके हैं अपनी जान

डिजिटल अल्कोहल मीटर खरीद घोटाले के सामने आने के बाद अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि कहीं इसी घटिया डिजिटल अल्कोहल मीटर की चूक के चलते तो मेरठ अलीगढ़ और लखनऊ में सैकड़ों लोगों की जान तो नहीं गई। सवाल इसलिए भी गंभीर है क्योंकि मरने वाले लोगों के परिजनों ने आरोप लगाया था कि दारू लाइसेंसी दुकानों से ली गई थी।

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