बड़े कारोबारी के हित में बनेगी शराब नीति: चर्चा जोरों पर:

लखनऊ। आबकारी नीति को लेकर तस्वीर साफ होने लगी है। भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि आबकारी विभाग जनवरी महीने का कोटा उठाने के लिए लाइसेंसी पर दबाव बन रहा है। फरवरी महीने का कोटा उठते ही आबकारी नीति का ऐलान किया जा सकता है। बताया जा रहा है कि 28 फरवरी के बाद कभी भी आबकारी नीति की घोषणा हो सकती है।
लॉटरी क्यों चाहता है आबकारी विभाग:
आबकारी विभाग इस वर्ष अपने राजस्व आंकड़ों को लेकर डरा हुआ है। विभाग को इस बार निर्धारित लक्ष्य से कम राज्यों से मिलने का अनुमान है ऐसी स्थिति में आबकारी विभाग लॉटरी के जरिए अपने राजस्व में बढ़ोतरी करना चाह रहा है। आबकारी विभाग को अंदाजा है कि कल 28000 फूट कर दुकानों के लिए करीब 3 लाख से ज्यादा आवेदन फार्म खरीदे जाएंगे। इस बार आवेदन फीस 20 से 25000 के बीच हो सकती है। ऐसे में विभाग को अनुमान है कि केवल आवेदन फार्म से ही उसका खजाना भर जाएगा। इसलिए आबकारी विभाग लॉटरी पर जोर दे रहा है।
लॉटरी से जोखिम:
आबकारी विभाग के अधिकारियों का भले ही लॉटरी से बंपर कमाई का अनुमान है लेकिन यहां बड़ा जोखिम भी दिखाई दे रहा है। जानकारों का मानना है कि 40% से ज्यादा देसी विदेशी मदिरा की दुकान भारी घाटी में चल रही हैं ऐसे में यह दुकान लॉटरी में छूट सकती हैं और उनके लिए फिर से लॉटरी या फिर रिन्यूअल के लिए प्रक्रिया अपनानी होगी। जोखिम यह है कि अगर 40% दुकानों का व्यवस्थापन लॉटरी के जरिए नहीं हो पाया तो उनके कोटे का क्या होगा। अगर कोटा नहीं उठा तो विभाग को लेने के देने पड़ जाएंगे। देखना है आबकारी विभाग अपनी चुनौतियों कैसे पार पाता है।
28000 दुकान पर डेढ़ करोड़ पेटी शराब डम्प:
आबकारी विभाग लॉटरी के जरिए अपना तिजोरी भरने के बारे में सोच रहा है लेकिन इस कारोबार से जुड़े 28000 लाइसेंसी और उनसे जुड़े लगभग 5 लाख लोगों के बारे में कुछ भी सोचने को तैयार नहीं है। मिली जानकारी के मुताबिक लगभग सभी दुकानों पर लगभग 1000 पेटी से ज्यादा देसी विदेशी और बियर डंप पड़ा है। यह कोटा 31 मार्च तक का है। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि आबकारी विभाग लॉटरी करता है तो प्रदेश भर की 28000 से ज्यादा दुकानों में जो डेढ़ करोड़ पेटी से ज्यादा शराब डंप पड़ी है उसका क्या होगा। शराब कारोबारी का क्या होगा। इस बर्बादी के लिए कौन जिम्मेदार होगा। क्या आबकारी विभाग के जिम्मेदार अधिकारी इस बारे में सोचेंगे कहना बड़ा मुश्किल है। प्रमुख सचिव और आबकारी आयुक्त की दिशाहीनता और योगिता का फायदा कुछ लोग उठा रहे हैं।
एडवांस इंडेंट का फरमान रेडिको और वेब तथा आईजीएल ग्रुप को फायदा पहुंचाने के लिए:
वास्तव में आबकारी नीति आबकारी आयुक्त या प्रमुख सचिव नहीं बना रहे हैं बल्कि प्रदेश के कुछ प्रमुख शराब कारोबारी अपने हिसाब से इस आबकारी नीति को प्रभावित कर रहे हैं। जानकारी मिली है कि छोटी डिस्टलरी और उनका कारोबार प्रभावित करने के लिए आबकारी आयुक्त ने कुछ बड़ी शराब कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए एडवांस इंडेंट वाला फरमान जारी किया है। बताया जा रहा है कि इसके पहले कुछ शराब कंपनियां आबकारी विभाग को उत्पादन शुल्क देकर अपना माल गोदाम के जरिए बेच पा रही थी उनका यह रास्ता रेडी को वेब ग्रुप और आईजीएल को खटकने लगा था इसीलिए उन्होंने आबकारी आयुक्त को सेट करके एडवांस्ड इंडेंट वाला फार्मूला जारी करवाया जिससे की छोटी शराब कंपनियों का उत्तर प्रदेश में कारोबार समेट जा सके और बड़ी मछलियों को बड़ा चारा मिल सके। एक तरह से इस बार आबकारी पॉलिसी बनाने में ही बड़ा घोटाला हो सकता है।
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