
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य और गृह मंत्री अमित शाह के जाल में नीतीश कुमार ऐसे फंसे की सारी इंजीनियरिंग भूल गई। वक्फ बोर्ड के मामले पर नीतीश कुमार का समर्थन देने के लिए मजबूर करके बिहार में भाजपा के लिए नीतीश कुमार नाम का कांटा लगभग दूरी कर दिया। नीतीश कुमार पिछले 20 वर्षों से मुस्लिम वोटो में लगभग 40% मत अपने साथ ले जाते थे और लवकुश समीकरण के सहारे राजद के सामने समस्या खड़ी करते थे और भाजपा को भी बैकफुट पर रखते थे। बार बिहार में भारतीय जनता पार्टी अपना मुख्यमंत्री चाहती थी लेकिन उसकी राह में नीतीश कुमार बहुत बड़ा रोड़ा बने हुए थे
नीतीश कुमार की सीटों की संख्या 2020 में मिली 43 सीटों से भी कम रहे इसके लिए बीजेपी ने एक जाल बिछा दिया और नीतीश कुमार उसमें फंस गए। वक्त बोर्ड पर नीतीश कुमार को अपने साथ लाकर भाजपा ने उन्हें मुसलमान का दुश्मन नंबर वन बना दिया मतलब यह सुनिश्चित कर दिया कि अपने दम पर नीतीश कुमार 20 से ज्यादा सीट अब नहीं जीत पाएंगे यानी नीतीश कुमार और उनकी पार्टी भाजपा के रहमों करम पर होगी।
कैसे मजबूर हुए नीतीश कुमार:
सूत्रों ने दावा किया है कि नीतीश कुमार उस सूचना पर वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर भाजपा का साथ देने के लिए मजबूर हो गए जब उन्हें यह जानकारी दी गई कि जनता दल यु के ज्यादातर सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ लल्लन सिंह के नेतृत्व में गृह मंत्री अमित शाह के संपर्क में आ गए हैं अर्थात पार्टी टूट सकती है और एक या दो सांसद छोड़कर बाकी सब भाजपा को समर्थन करने के लिए तैयार है। नीतीश कुमार अपनी स्थिति उद्धव ठाकरे जैसी नहीं चाहते थे इसीलिए उन्होंने मजबूर होकर बिल का समर्थन करने का निर्णय लिया।
इस तरह देखा जाए तो 20 वर्षों से बिहार की राजनीति में दबदबा बनाए रखने वाले नीतीश कुमार के पोलिटिकल कैरियर का अंत होता दिखाई दे रहा है।




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