नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने सभी चाल बहुत ही चतुराई से चली। पहली बार ऐसा हुआ कि भाजपा के तथाकथित चाणक्य और रणनीतिकार कांग्रेस की ब्यूह रचना समझने में नाकाम हो गई।
कांग्रेस ने अडानी के मुद्दे पर पूरे देश में हंगामा खड़ा करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत इमेज को जहां सवालों के कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया वही राज्य सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मजबूती से घेराबंदी कर चुनावी राह मुश्किल कर दी। कांग्रेस का वार रूम पूरी तैयारी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने की ठान लिया था। कांग्रेस के रणनीतिकार जानते थे कि प्रधानमंत्री हमेशा की तरह नेहरू गांधी परिवार पर निजी हमले करेंगे और चुनाव को राष्ट्रवाद के एजेंडे पर ले जाएंगे लेकिन कांग्रेस ने चतुराई से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ऐसे मुद्दे में फंसा दिया जिसने भाजपा की नैया डुबाने में अहम भूमिका निभाई।
कांग्रेस ने जानबूझकर उछाला था पीएफआई और बजरंग दल का मुद्दा
कांग्रेस नहीं चाहती थी कि हमेशा की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस को परिवारवाद अथवा राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कटघरे में खड़ा करें और स्थानीय मुद्दों को तुच्छ बना दे इसीलिए जानबूझकर कांग्रेस ने ठीक उस समय जब प्रधानमंत्री धुआंधार चुनाव प्रचार के लिए कर्नाटक में थे पीएफआई और बजरंग दल का मुद्दा उछाल दिया और प्रधानमंत्री ने अपने स्वभाव के मुताबिक इसे लपक लिया वह कांग्रेस की रणनीति को समझ नहीं पाए और इसी मुद्दे पर अपना पूरा अभियान केंद्रित कर दिया । इतना ही नहीं पूरी कर्नाटक बीजेपी ने इसे अपना केंद्रीय चुनावी मुद्दा बना लिया जबकि कर्नाटक की जनता स्थानीय मुद्दों को ही सुनना चाहती थी। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां अपनी चुनावी सभाओं में बजरंगबली का नारा लगाते रहे वहीं कांग्रेस ने इसे मौका बनाते हुए अपनी पांच गारंटी योजनाओं को केंद्रीय मुद्दा बनाया साथ ही साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कर्नाटक की स्थानीय सरकार के 40% कमीशन वाले मामले में प्रधानमंत्री मोदी को भी घेर लिया।
सफल रही प्रधानमंत्री को स्थानीय मुद्दे पर ना बोलने देने की कांग्रेस की रणनीति
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री स्थानी मुद्दे पर ना बोल पाए। भाजपा की योजनाओं पर चर्चा ना कर पाए। इसको लेकर जो ब्यूह रचना तैयार की थी वह सफल हो गई। कर्नाटक के प्रधानमंत्री समेत भाजपा के स्थानीय नेताओं से इसलिए नाराज थे कि वह महंगाई बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर कुछ भी नहीं बोल रहे थे यही वजह थी कि जब प्रधानमंत्री ने बजरंगबली के अपना चुनावी मुद्दा बनाया तो लोगों ने प्रधानमंत्री से भी बेरुखी अपना ली जो भारतीय जनता पार्टी के लिए भारी पड़ी।
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