संजय भूस रेड्डी, पी गुरु प्रसाद सेंथिल पांडियन सी और वर्तमान कमिश्नर तक इस घोटाले में बड़े खिलाड़ी:
लखनऊ। उत्तर प्रदेश आबकारी विभाग ने प्रदेश में मिलावटी और नकली शराब की बिक्री उत्पादन और भंडारण रोकने के लिए ट्रैक और ट्रैस सिस्टम के नाम पर कम से कम 500 करोड रुपए की हेरा फेरी की है। आरोपी कंपनी का पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूसरेड्डी से बेहद करीबी संबंध रहा है। उन्होंने ही नियमों को ताक पर रखकर पहले टेंडर में सक्षम प्रतिस्पर्धी कंपनियों को आने से रोका और बाद में जब यह कंपनी ट्रैक और ट्रैस सिस्टम को क्रियान्वित करने में असफल रही तो तत्कालीन एडिशनल एक्साइज कमिश्नर लाइसेंस हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने अवैध रूप से मेंटर कंपनी को ट्रैक और ट्रैस सिस्टम को अवैध रूप से जिम्मेदारी दे दी। अवैध इसलिए की इस कंपनी को आबकारी विभाग के अधिकृत पोर्टल IESCMS की सेवा प्रदाता कंपनी के रूप में कभी नहीं चुना गया और ना ही इसकी कोई मंजूरी शासन स्तर पर या आबकारी आयुक्तालय के स्तर पर लिखित रूप से कभी दी गई यह अलग बात है कि मेंटर पोर्टल पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूसरेड्डी पूर्व आबकारी आयुक्त गुरु प्रसाद पूर्व आबकारी आयुक्त सेंथिल पांडियन सी तथा वर्तमान आबकारी आयुक्त डॉ आदर्श सिंह की जानकारी में यह खेल चलता रहा और इसी मेंटर पोर्टल के फर्जी आंकड़े फर्जी जॉइंट डायरेक्टर जोगिंदर सिंह जारी करता रहा।
मेंटर पोर्टल ने जारी किए फर्जी गेट पास, और क्यूआर : हुआ हजारों करोड़ का घोटाला
मैटर पोर्टल अवैध रूप से करीब 4 वर्षों से आबकारी विभाग के अधिकृत पोर्टल IESCMS के लिए एडिशनल एक्साइज कमिश्नर लाइसेंस हरिश्चंद्र श्रीवास्तव की मिली भगत से सेवा प्रदाता बना रहा। फर्जी गेट पास और क्यूआर के जरिए शराब माफियाओं की मदद करके हजारों करोड़ का मुनाफा कमवाया विभाग को कई हजार करोड रुपए की राजस्व क्षति होती रही लेकिन जिम्मेदार पर्यवेक्षणी अधिकारी इस पूरे प्रकरण में मौन रहे जिससे लगता है कि उनकी भी इस खेल में पूरी मिली भगत थी।
पोर्टर मेंटर का और डिवाइस ओएसिस की:
आबकारी विभाग का तमाशा तो देखिए कि विभाग के अधिकृत पोर्टल IESCMS की सेवा प्रदाता कंपनी ओएसिस का पोर्टल पिछले 4 सालों से ठप पड़ा था जबकि अवैध रूप से मैटर पोर्टल पर इंडेंट लगता रहा डिस्टलरी का गेट पास बनता रहा और शराब की बोतलों का क्यूआर जेनरेट होता रहा और स्टैटिसटिक्स विभाग जिसमें एक फर्जी जॉइंट डायरेक्टर तैनात है वह इसी आंकड़े को जारी करता रहा। मजेदार बात यह है कि पोर्टल संचालन की जिम्मेदारी मैटर अवैध रूप से निभा रहा था जबकि गोदाम और लाइसेंसी दुकान पर डिवाइस ओएसिस कंपनी की दी गई थी। कहां जा रहा है कि बाजार में जो डिवाइस ₹3000 से काम में मिल रही है इस डिवाइस के लिए ओएसिस कंपनी ने विभाग पर ₹20000 से अधिक चार्ज किया या खेल खुलेआम हुआ और पूर्व प्रमुख सचिव संजय भूसरेड्डी और कमिश्नर गुरु प्रसाद तथा सेंथिल पांडियन सी की जानकारी में हुआ। ओएसिस कंपनी को लेकर शुरू से आज तक शिकायत लगातार बनी हुई है। अधिकांश लाइसेंसी का मानना है कि डिवाइस बेहद घटिया है और स्कैन करने पर थोड़ी देर में ही गर्म हो जाती है तथा काम करना बंद कर देती है जिससे बिक्री पर भी असर पड़ रहा है इसकी शिकायत अधिकारियों को की गई लेकिन कभी भी उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया।
कैसे पकड़ा गया घोटाला
ट्रैक और ट्रेस सिस्टम का यह सुनियोजित घोटाला उस समय पकड़ में आया जब नई आबकारी आयुक्त आदर्श सिंह ने 15 मार्च के बाद मैटर पोर्टल पर किसी प्रकार के इंडेंट और गेट पास तथा क्यूआर जनरेट करने पर रोक लगा दी लेकिन यह नहीं बताया कि मैटर पोर्टल को आबकारी विभाग के अधिकृत पोर्टल iescms के संचालन की जिम्मेदारी किसके आदेश पर मिली थी और उसे अचानक हटाने का आदेश क्यों देना पड़ा। यह सवाल इसलिए भी गंभीर है क्योंकि पिछले 4 सालों में इसी पोर्टल के द्वारा डेढ़ लाख करोड रुपए से अधिक के गेट पास इंडेंट और क्यूआर जनरेट किए गए और आबकारी विभाग को कोई दिक्कत नहीं थी फिर अचानक इस पोर्टल से विभाग ने दूरी क्यों बनाई । इसके पीछे क्या खेल है और इस खेल में कौन-कौन शामिल हैं इसका पूरा खुलासा होना चाहिए।
ओएसिस पोर्टल पर आबकारी विभाग का फिलहाल 15 मार्च 2024 से पहले का कोई ज्यादा डाटा उपलब्ध नहीं है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि 15 मार्च से पहले ओएसिस और मैटर दोनों ही पोर्टल से गेट पास इंडेंट और क्यूआर जनरेट हो रहे थे और मान्य थे अचानक मेंटर पोर्टल को हटाने के पीछे क्या खेल हो रहा है इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं।
दागी पूर्व अतिरिक्त आबकारी आयुक्त लाइसेंस हरिश्चंद्र को रिटायरमेंट के बाद आउटसोर्सिंग पर क्यों लाया गया:
सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि मेंटर पोर्टल को अवैध रूप से आबकारी विभाग के अधिकृत पोर्टल के संचालन की जिम्मेदारी देने वाले हरिश्चंद्र श्रीवास्तव से अब तक पूछताछ क्यों नहीं हुई। हरिश्चंद्र श्रीवास्तव के खिलाफ प्राथमिक दर्ज कर उन्हें जेल क्यों नहीं भेजा गया। अवैध पोर्टल का शराब माफियाओं ने कितना फायदा उठाया और कितनी एक्साइज ड्यूटी का नुकसान विभाग को हुआ इसकी कैग से जांच क्यों नहीं कराई गई ऐसे तमाम सवाल हैं जिसका विभाग के पास कोई जवाब नहीं है।
कमिश्नर आदर्श सिंह ने घोटाले के मास्टरमाइंड हरिश्चंद्र श्रीवास्तव की संविदा पर नियुक्ति को क्यों दी मंजूरी:
अपने घर ले घोटाले के लिए चर्चित आबकारी आयुक्त आदर्श सिंह फिर से सवालों के घेरे में है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि अवैध रूप से विभाग में पोर्टल का संचालन करके शराब माफियाओं की मदद करने वाले पूर्व संयुक्त आबकारी आयुक्त लाइसेंस हरिश्चंद्र श्रीवास्तव जिन्होंने मेंटर पोर्टल के जरिए घोटाले की साजिश रची उसकी जांच करने के बजाय वर्तमान आबकारी आयुक्त ने इसी दागी हरिश्चंद्र को आउटसोर्सिंग के जरिए फिर से पोर्टल संचालन की जिम्मेदारी क्यों दी। क्या इसके पीछे कोई बड़ी डील हुई है यदि हां तो यह सच्चाई सामने आनी चाहिए।
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