जिसने नहीं दिया लिफाफा उसकी किस्मत लिफाफे में बंद हो गई:
प्रयागराज। लोकायुक्त की रिपोर्ट में अपने भ्रष्टाचार के लिए चर्चित आबकारी आयुक्त को आदर्श सिंह और उनके करीबी मुबारक अली के खेल के कई इंस्पेक्टर शिकार हो गए। सहायक आबकारी आयुक्त के कुल 55 पद के सापेक्ष मात्र 29 निरीक्षक सहायक अधिकारी आयुक्त के पद पर पदोन्नति पा सके। आम चर्चा है कि डीपीसी से पहले मुबारक अली और कमिश्नर की गोपनीय मीटिंग में कुछ निरीक्षकों के प्रकरण की सुनवाई कर उनके दंड को आंशिक किया गया जिसकी वजह से प्रोन्नति का रास्ता साफ हुआ इसके बदले क्या लेनदेन हुआ इसको लेकर चर्चा है लेकिन अवध भूमि न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता। हिम्मत सिंह और विजय आनंद जिनके मेजर पनिशमेंट थे उनकी सुनवाई हुई और यह दोनों इंस्पेक्टर अपने जुगाड़ के चलते प्रोन्नति पाने में सफल रहे।
शासनादेश के अनुसार विभागीय कार्रवाई को 6 माह में ही समाप्त करना चाहिए लेकिन मुख्यालय स्तर पर व्यक्तिगत सुनवाई भी 6 माह में पूरी नहीं हो पा रही है आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है।
कुछ प्रकरण में आबकारी आयुक्त आदर्श सिंह और सहायक आबकारी आयुक्त कार्मिक मुबारक अली ने व्यक्तिगत रूप से 6 माह से अधिक समय तक सुनवाई की और कोई निर्णय नहीं लिया
जबकि शासन का स्पष्ट निर्देश है कि कोई भी प्रकरण सुनवाई के 6 माह के भीतर ही समाप्त होना चाहिए। शासनादेश का स्पष्ट उल्लंघन के लिए जिम्मेदार कौन है। इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा।
क्यों नहीं खुले 26 लिफाफे:
बताया जा रहा है की मुबारक अली ने अपने स्तर से जिनके प्रकरण को सुनवाई के लिए अग्रसारित किया उन्हीं को राहत मिली इस राहत के लिए किसको क्या कीमत चुकानी पड़ी कहना मुश्किल है।
जिन निरीक्षकों के लिफाफे नहीं खुला उनमें से कई का प्रकरण 4 महीने से लेकर 4 वर्ष से पेंडिंग पड़ा हुआ है।
ऐसे इंस्पेक्टर जो आबकारी आयुक्त की ज्यादती का शिकार हुए उनमें से प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
अखिलेश्वर नाथ सिंह,चेतन सिंह, मुकेश कुमार शर्मा, जय कमल कुलश्रेष्ठ, अजय कुमार सिंह, नंदलाल चौरसिया, वंदना सिंह, गुलाब सिंह, शिल्पी सिंह, सरिता सिंह, अपर्णा द्विवेदी, अजय कुमार, अनिल कुमार, बृजेश कुमार पांडेय, विद्यासागर राजमोहन त्रिपाठी तथा सुभाष चंद्र। कहां जा रहा है कि इन निरीक्षकों का प्रकरण लिफाफे में ही बंद रह गया क्योंकि इनके प्रकरण को सुनवाई के लिए कमिश्नर के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। इस प्रकरण में मुबारक अली सवालों के घेरे में है। कमिश्नर द्वारा प्रकरण की सुनवाई नहीं किए जाने के चलते जहां विभाग को 26 और सहायक आबकारी आयुक्त नहीं मिल पाए वहीं शासन से आबकारी मुख्यालय तक दर्शन और परिक्रमा करने वाले निरीक्षकों की मुराद पूरी हो गई।
बताया जा रहा है कि एक दर्जन से ज्यादा निरीक्षक का लिफाफा खोलकर कमिश्नर के स्तर पर सुनवाई हुई और उन्हें राहत दी गई।
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