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कई आबकारी अधिकारी बने भांग माफिया:

भांग की गोदाम के व्यवस्थापन की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव:

प्रयागराज। लोगों को नई शराब नीति का इंतजार रहता है लेकिन उत्तर प्रदेश में भांग की दुकान और गोदाम के व्यवस्थापन को लेकर कोई भी प्रदर्शित नहीं है और ना ही प्रतिवर्ष भांग की कोई नीति घोषित की जाती है। बताया जा रहा है कि मंडल स्तर पर डिप्टी एक्साइज कमिश्नर के अधीन गोदाम होते हैं जबकि जनपद में मुख्यालय स्तर पर भांग के गोदाम स्थापित होते हैं। इन गोदाम का व्यवस्थापन कैसे होता है इसको लेकर कोई स्पष्ट नीति आज तक जारी नहीं की गई है।  जनपद स्तर पर गोदाम में भांग की आपूर्ति कैसे होती है यह भी रहस्य बना हुआ है। भांग के पौधे से भांग के पत्ते कैसे तोड़े जाते हैं इनका संग्रह करने वालों को कौन नियुक्त करता है। भांग की खेती का लाइसेंस कितने लोगों को मिला है। भांग के उत्पादन के आंकड़े क्या है। इसका कोई हिसाब किताब आबकारी विभाग द्वारा आज तक जारी नहीं किया गया है। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिवर्ष लगभग 5000 करोड रुपए का कारोबार होता है लेकिन इतना बड़ा व्यवसाय होने के बावजूद भांग से होने वाले राजस्व आंकड़ों को आबकारी विभाग के पोर्टल पर कभी दर्शाया नहीं जाता है। कहां जा रहा है कि आबकारी विभाग के कुछ बड़े अधिकारी इस बड़े घोटाले में शामिल हैं। जिन अधिकारियों की भांग के कारोबार में ज्यादा चर्चा हो रही है उसमें देवीपाटन मंडल के डिप्टी एक्साइज कमिश्नर आलोक कुमार लखनऊ के जॉइंट एक्साइज कमिश्नर दिलीप कुमार मणि त्रिपाठी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। बताया जा रहा है कि आलोक कुमार उसे समय भांग माफियाओं के संपर्क में आए जब वह डिप्टी एक्साइज कमिश्नर लाइसेंस के रूप में कार्यरत हुए। कहां जा रहा है कि डिप्टी लाइसेंस के पद पर रहते हुए उन्नाव रायबरेली प्रयागराज मिर्जापुर वाराणसी गोंडा देवरिया बस्ती बहराइच और लखीमपुर खीरी के  कई बड़े भांग के कारोबारी के संपर्क में रहे और उनके साथ कथित रूप से व्यापारिक रिश्ते भी रखते हैं। कहां गया है कि भांग की दुकान गोदाम और भांग की खेती तथा भांग से बनने वाले मुनक्का के उत्पादन यूनिट का लाइसेंस देने के लिए करोड़ों का खेल किया और यह खेल आज भी जारी है। भांग से हजारों करोड़ों का राजस्व होता है लेकिन यह आंकड़ा कभी भी अलग से आबकारी विभाग द्वारा जारी नहीं किया गया है। बताया जाता है कि शराब की दुकान और गोदाम के व्यवस्थापन से जो राजस्व होता है वह सरकार के खाते में जरूर जाता है लेकिन भांग के गोदाम दुकान और अन्य मदों से जो आय होती है वह आबकारी आयुक्त समेत कई बड़े अधिकारियों का निजी राजस्व माना जाता है।

भांग और मुनक्का के उत्पादन का कोई आंकड़ा नहीं:

उत्तर प्रदेश में कितने लोगों को भांग की खेती का लाइसेंस मिला है। कुल कितना भांग का उत्पादन हो रहा है। मुनक्का उत्पादन की कुल कितनी इकाइयां हैं। मुनक्का उत्पादन इकाइयों में भांग की कुल कितनी आपूर्ति हुई। आपूर्ति की गई भांग के सापेक्ष मुनक्का उत्पादन इकाइयों ने कुल कितना मुनक्का का उत्पादन किया। मुनक्का उत्पादन पर कुल कितना उत्पादन शुल्क मिला यह सभी आंकड़े आबकारी विभाग में गोल किए गए हैं। इसका कोई भी आंकड़ा आबकारी विभाग के ऑफिसियल वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है जबकि हजारों करोड रुपए का कारोबार है। इस मामले में आबकारी विभाग के सभी वरिष्ठ अधिकारियों ने  चुप्पी साध  रखी है।

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