अवधभूमि

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आरओ/एआरओ की भर्ती परीक्षा में धांधली:

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित, एव योगी सरकार के  एक पूर्व कैबिनेट मंत्री के करीबी इस घोटाले के लाभार्थी:

इंडियन एक्सप्रेस का सनसनी खेज खुलासा:

लखनऊ। 2019 में हुई समीक्षा अधिकारी और सहायक समीक्षा अधिकारी की तथा विधानसभा सचिवालय में हुई भर्ती में जमकर धांधली हुई थी। यह मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया था। सहायक समीक्षा अधिकारी समीक्षा अधिकारी और विधानसभा सचिवालय तथा विधान परिषद सचिवालय में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित के पीआरओ तथा उनके भाई को जहां विधानसभा सचिवालय में नियुक्ति मिली वहीं एक पूर्व कैबिनेट मंत्री  के भतीजे को भी विधानसभा में नियुक्ति मिल गई । प्रमुख सचिव सचिव प्रदीप दुबे का बेटा और बेटी तथा भाई भी  बहती गंगा में हाथ धोने में सफल रहे ।विधान परिषद के सचिव जयप्रकाश सिंह के बेटे और बेटी के  पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पूर्व निजी सचिव के फैमिली मेंबर तथा पूर्व कैबिनेट मंत्री और सपा नेता शिवपाल सिंह के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी के परिजनों को समीक्षा अधिकारी और सहायक समीक्षा अधिकारी के पद रेवड़ी की तरह बांटे गए। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार इतने बड़े पैमाने पर धांधली को हाई कोर्ट ने संज्ञान में लिया और इसे शॉकिंग स्कैम बताते हुए इसकी सीबीआई से जांच करवाने का आदेश दिया। बाद में हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची जहां पूरे मामले में स्थगन आदेश दिया गया और इसी मामले की सुनवाई अगले साल यानी जनवरी 25 में होनी है।

क्यों उठे सवाल:

भर्ती परीक्षा पर इसलिए भी सवाल उठे क्योंकि यह परीक्षा आमतौर पर यूपीपीएससी द्वारा कराई जाती है लेकिन एक षड्यंत्र के तहत यूपीपीएससी से यह महत्वपूर्ण परीक्षा ना करवा कर एक निजी एजेंसी से भर्ती परीक्षा करवाने के बाद अभ्यर्थियों के मन में सवाल खड़ा हो गया।

परीक्षा करवाने वाली एजेंसी से जुड़े लोगों का भी हुआ चयन:

इतना ही नहीं, इन नियुक्तियों में कम से कम पांच ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो दो निजी फर्मों, टीआर डाटा प्रोसेसिंग और राभव के मालिकों के रिश्तेदार हैं, जिन्होंने कोरोना की पहली लहर के दौरान एग्जाम दिया था। इन सभी को तीन साल पहले यूपी विधानमंडलों को प्रशासित करने वाले दो सचिवालयों में नियुक्त किया गया था।

विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में कुल 186 पदों पर निकली थी वैकेंसी:

रिपोर्ट के अनुसार विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में कुल 186 पदों के लिए भर्ती निकली थी और कुल वैकेंसी का 5% नौकरशाह और नेताओं के करीबियों ने आपस में बंदर बांट कर लिया जबकि इस पोस्ट के लिए लगभग ढाई लाख लोगों ने आवेदन किया था। उसे समय भी इस वैकेंसी में घोटाले को लेकर काफी हंगामा हुआ था लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी थी। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल सीबीआई जांच पर रोक लगाते हुए 25 जनवरी 2025 को  सुनवाई के लिए अगली तिथि तय की है।

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