अवधभूमि

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आबकारी अधिकारियों की भर रही तिजोरी:

हजारों करोड़ों का खेल सारे उपाय फेल:

लखनऊ। भांग के अवैध कारोबार से आबकारी विभाग के अधिकारी मालामाल हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि आबकारी विभाग के अधिकारियों को हजारों करोड रुपए भांग के अवैध कारोबार से मिलते हैं। उत्तर प्रदेश के 75 जनपदों में भांग के थोक गोदाम में आपूर्ति करने वाली फर्मों के चयन में कोई पारदर्शिता नहीं है। नियमानुसार गोदाम के लिए भांग आपूर्ति करने वाली फर्म के चयन के लिए खुली निविदा होनी चाहिए लेकिन यह हो ही नहीं रहा है। लगभग चार दशकों से उत्तर प्रदेश में कुछ चुनिंदा फर्म गोदानों में भांग की आपूर्ति कर रहे हैं। यह बात समझ से परे है कि  भांग नियंत्रण मुक्त है तो फिर किस नियम के अनुसार इसको नियंत्रित करने के लिए आबकारी विभाग जनपद में गोदाम स्थापित कर रहा है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि क्या आबकारी विभाग आपूर्तिकर्ता फर्मों से भांग की खरीद करता है और फुटकर लाइसेंसी भांग की दुकान को बेचता है। आबकारी विभाग द्वारा गोदाम को स्थापित करना अवैध है। अवैध इसलिए है क्योंकि यदि आबकारी विभाग को गोदाम स्थापित करना है और उसे भंग की निकासी करके फुटकर लाइसेंसी को बेचना है तो उसके लिए उत्तर प्रदेश के वनिज एवं कर विभाग से जीएसटी नंबर चाहिए। ऐसे में सवाल उठता है कि आबकारी विभाग के जो 75 गोदाम 75 जनपदों में है वह किस नियम से चल रहा है। भांग से होने वाले कारोबार को आबकारी विभाग के अधिकृत पोर्टल पर क्यों नहीं दर्शाया जा रहा है।

आबकारी विभाग को बताना होगा कि पिछले चार दशक से प्रतिवर्ष कितना भांग का उत्पादन हुआ। विभाग ने किस दर से भांग की खरीद की और किस दर से फुटकर लाइसेंसी को उपलब्ध कराया है और इससे विभाग को कितना हानि या लाभ हुआ है इसका विस्तृत विवरण जारी करना चाहिए।

लाइसेंस और प्राविधिक विभाग सवालों के घेरे में:

बताया जा रहा है कि भांग की  गोदाम का व्यवस्थापन आबकारी आयुक्त की सीधी देखरेख में होता है। यह भी कहा जा रहा है कि लगभग 5000 करोड रुपए के इस कारोबार में शामिल भांग माफिया एडिशनल कमिश्नर कमिश्नर डिप्टी लाइसेंस और प्राविधिक अधिकारी के बीच कई करोड़ की बंदर बांट होती है।

मुनक्का उत्पादन का भी आंकड़ा नहीं जारी हो रहा:

बताया जा रहा है कि 1 किलो मुनक्का का दाम लगभग ₹4000 किलो है और यह मुनक्का भांग से तैयार होता है। विभाग की माने तो मुनक्का बनाने वाली फर्म को बहुत ही कम दाम पर लगभग ₹1200 कुंतल के दर से भांग आपूर्ति की जाती है। कहा जाता है कि एक कुंटल भांग से लगभग 20 किलो मुनक्का तैयार होता है। अर्थात ₹1200 की भांग से ₹80000 का मुनक्का तैयार किया जाता है। इस तरह देखा जाए तो मुनक्का बनाने वाली कंपनी ₹100000 की भांग से 80 लख रुपए का मुनक्का तैयार करती है। इस मुनाफे में आबकारी आयुक्त एडिशनल कमिश्नर डिप्टी लाइसेंस और प्राविधिक अधिकारी का मोटा हिस्सा होता है।

भांग उत्पादन का फर्जीवाड़ा:

आबकारी विभाग करता है कि भांग जंगली पौधा है और इसको कोई उत्पादन नहीं करता है। ऐसे में सवाल उठता है कि जिस जमीन पर या जंगल के तराई भाग में यह पैदा होता है उसका स्वामी कौन है। यदि यह निजी काश्तकार की भूमि पर उत्पन्न होता है तो उसका स्वामी किस होगा और यदि यह जंगल की जमीन पर उग रहा है तो फिर भी इसका स्वामित्व वन विभाग का होता है। भांग का संग्रह करने के लिए संबंधित भूमि स्वामी की अनुमति आवश्यक है। आबकारी विभाग को यह जरूर बताना चाहिए कि वह किसकी अनुमति से और कहां से भांग का संग्रह करता है। यदि भांग फ्री में संग्रह की जाती है तो फिर इस गोदाम में रखकर आबकारी विभाग फुटकर लाइसेंसी को क्यों बेचता है। कारी विभाग के सरकारी गोदाम तक भांग की आपूर्तिकर्ता फर्म क्या फ्री में आपूर्ति करती हैं और यदि नहीं तो आबकारी विभाग यह भी बताएं कि आपूर्तिकर्ता फर्म क्या भांग को खरीद कर लाते हैं और लाते हैं तो किससे खरीद कर लाते हैं। यहां हजारों करोड़ के घोटाले का संकेत है जिसमें आबकारी आयुक्त और सभी जिला आबकारी अधिकारी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि आबकारी विभाग में जो भी डिप्टी लाइसेंस रहे हैं वह सब थोक आपूर्तिकर्ताओं से लंबी उगाही करते रहे हैं और उनके व्यावसायिक साझेदार रहे हैं इसी कड़ी में वर्तमान में डिप्टी एक्साइज कमिश्नर देवी पाटन मंडल आलोक कुमार और जॉइंट एक्साइज कमिश्नर दिलीप कुमार मणि त्रिपाठी एडिशनल कंडीशनर ज्ञानेश्वर त्रिपाठी और आबकारी आयुक्त का नाम भी चर्चा में है।

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