आबकारी विभाग में आम बात है महिलाओं कर्मियों का उत्पीड़न :
वाराणसी। उत्तर प्रदेश में आबकारी विभाग के कई अधिकारी अधीनस्थ महिला कर्मचारियों के उत्पीड़न के लिए बदनाम रहे हैं। ऐसे ही अधिकारियों में वाराणसी के डिप्टी कमिश्नर प्रदीप दुबे का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। प्रदीप दुबे के उत्पीड़न से आजिज आकर महिला आरक्षी ने वाराणसी के मंडल आयुक्त कौशल राज शर्मा से 5 जून 2024 को अपने पति के साथ मिलकर उपआबकारी आयुक्त कार्यालय में जो कुछ भी उत्पीड़न और शोषण हो रहा था अपनी व्यथा सुनाई जिसको गंभीरता से लेते हुए मंडल आयुक्त कौशल राज शर्मा ने उप आबकारी आयुक्त प्रदीप दुबे को टेलीफोन पर कड़ी फटकार लगाते हुए प्रकरण पर कार्रवाई करने के लिए कहा और पीड़िता के पत्र पर डिप्टी कमिश्नर आबकारी मार्क किया किंतु प्रदीप दुबे अपने घमंड में चूर होने के कारण मंडल आयुक्त के पत्र पर कोई कार्रवाई करने के बजाय पीड़िता आरक्षित को और ज्यादा परेशान करने लगे। जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो बेहोश होकर पीड़ित आरक्षी लक्ष्मी सिंह ने पुणे 21 जून को मंडल आयुक्त कौशल राज शर्मा से फिर मिलकर एक अन्य प्रार्थना पत्र दिया। प्रकरण की संवेदनशीलता को देखते हुए पीड़िता के प्रार्थना पत्र पर संयुक्त आबकारी आयुक्त दिनेश सिंह को मार्क करते हुए वाराणसी में ही पोस्टिंग बनाए रखने अथवा तबादला नही करने का आदेश दिया। संयुक्त आबकारी आयुक्त ने मंडला आयुक्त के आदेश को रद्दी की टोकरी में डाल दिया और आज तक कोई का
इसके पूर्व पीड़ित आरक्षी लक्ष्मी सिंह के प्रार्थना पत्र पर विभागीय मंत्री नितिन अग्रवाल ने आबकारी आयुक्त डॉक्टर आदर्श सिंह को भी इस प्रकरण में उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया किंतु मंत्री के आदेश का मजाक बनाते हुए आयुक्त ने भी कोई कार्रवाई नहीं की। मजे की बात तो यह है कि जब हाई कोर्ट ने इस मामले में कमिश्नर आदर्श सिंह की व्यक्तिगत पेशी तलब की तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि उन्हें इस प्रकरण में कुछ भी जानकारी नहीं है।
मजे की बात यह है कि मंत्री द्वारा कमिश्नर को संदर्भित टिप्पणी वाला पत्र आबकारी आयुक्त कार्यालय में रिसीव होने के बाद भी आयुक्त को हाईकोर्ट में यह कहने के लिए किसने विवश किया कि प्रकरण उनके संज्ञान में नहीं है। कुल मिलाकर डिप्टी कमिश्नर प्रदीप दुबे और जॉइंट कमिश्नर दिनेश सिंह ने संवेदनशीलता और कर्तव्य परायणता का परिचय दिया होता तो आज आबकारी विभाग की फजीहत नहीं होती। प्रदीप दुबे जो कि विभाग की छवि को खुले आम दूषित कर रहे हैं और ज्वाइंट कमिश्नर भी उनके साथ दे रहे हैं ऐसे में आबकारी आयुक्त को एक से अधिक बार अगर ऐसे प्रकरण में अदालत में जाकर माफी मांगनी पड़ रही है तो इसका करण समझा जा सकता है।
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